उत्तराखंड के अल्मोड़ा से ३५ किलोमीटर दूर स्थित केंद्र जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतताप्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग २५० मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे २२४ मंदिर स्थित हैं।
[संपादित करें]
उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग २५० छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी shilaon से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है।
[संपादित करें]स्थिति
जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वरऔर भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगाके तट पर समुद्रतल से लगभग पांच हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहारभगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है।
[संपादित करें]पौराणिक संदर्भ
पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियोंने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजयमें स्थापित शिवलिंगको कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएंही पूरी हो सकती हैं।
No comments:
Post a Comment
हमारे तीर्थ स्थान और मंदिर के पाठक और टिप्पणीकार के रुप में आपका स्वागत है! आपके सुझावों से हमें प्रोत्साहन मिलता है कृपया ध्यान रखें: अपनी राय देते समय किसी प्रकार के अभद्र शब्द, भाषा का प्रयॊग न करें।