कुल्लू से उत्तर-पूर्व में आठ किलोमीटर दूर खराल घाटी में हैं बिजली महादेव। यह मंदिर कितना पुराना है, इसका कोई अंदाजा नहीं है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण सैकड़ों साल पहले हुआ था।
इस मंदिर से लेकर कई कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक का ताल्लुक ऋषि वशिष्ट से है तो दूसरे का कुलंत नाम के एक राक्षस से।
कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में दर्शन के लिए आता है, उसके जीवन भर के पाप खत्म हो जाते हैं। पहाड़ी शैली में बने इस मंदिर को लेकर कई कहानियां कही जाती हैं।
ऋग्वेद में जिक्र है कि, ऋषि वशिष्ठ ने भगवान रूद्र से प्रार्थना की कि वे अपनी अंदर की ऊर्जा को कम करें, ताकि महाविनाश से बचा जा सके। भगवान रूद्र ने मानव कल्या ण के लिए अपनी ऊर्जा अंदर सोख ली।
यह घटना पार्वती और व्या्स नदी के संगम पर हुई थी, इसलिए यहां भगवान शंकर का मंदिर बनाया गया और नाम रखा गया बिजलेश्वइर महादेव, जिसे आज लोग बिजली महादेव कहते हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार, पहाड़ों पर कुलंत राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। ऋषि- मुनियों ने इस राक्षस को मारने के लिए देवताओं से प्रार्थना की। देवताओं ने इस राक्षस की सेना को तो खत्म कर दिया, लेकिन राक्षस भाग खड़ा हुआ।
इसके बाद देवताओं ने इस राक्षस को खत्मे करने के लिए भगवान शंकर से प्रार्थना की। भगवान ने बार-बार आकाशीय बिजली गिराई।
मानव जीवन को बचाने के लिए भगवान ने शिवलिंग स्थारपित कर खुद बिजली के प्रहार झेलने शुरू किए। तभी से यह शिवलिंग बिजली के प्रहार झेल रहा है। यह प्रतीक है शिव के कल्याणकारी रुप का।
इस मंदिर का संबंध एक और लोककथा से है। लोककथा के अनुसार पुराने समय में जालंधर दैत्य का अस्तित्व था। उसे सागर पुत्र भी कहते हैं। उस राक्षस ने अपने तप से सृष्टि के रचयिता आदि ब्रह्म को जीत लिया था और अपने बल से जग के पालनहार विष्णु को भी बंदी बना लिया था। उसने सभी देवताओं को पराजित कर त्रिलोक में उत्पात मचा रखा था। सभी उससे भयभीत थे। दैत्य त्रिलोक का स्वामी बनना चाहता था। कहते हैं कि इसी स्थान पर उसका शिवजी से भयंकर युद्ध हुआ था।
भोलेनाथ ने उसे खत्म कर सभी देवताओं को उसके चंगुल से मुक्त करवाया था। जिस गदा से शिवजी ने उस दैत्य का वध किया था, वह यहीं रखी गई और पिंडी के रूप में परिवर्तित हो गई। यह आज भी मौजूद है। इस विषयुक्त गदा को निर्विष करने के लिए इंद्रदेव ने आकाशीय बिजली गिराई।
आज भी कुछ वर्षों के अंतराल में जब उक्त पिंडी पर बिजली गिरती है तो यह टुकड़े-टुकड़े हो जाती है। इसे जोड़ने के लिए मक्खन का इस्तेमाल होता है और शायद यह भी एक कारण है कि इसका नाम बिजली महादेव पड़ा है।
एक अन्य कथा के अनुसार यहां साथ लगते गांव भ्रैण में एक बार एक औरत को भोलेनाथ का दर्शन मोहरे के रूप में हुआ, जिसे उसने माश, स्थानीय भाषा में जिसे माह कहते हैं की तिजोरी में रखा। बाद में इसका नाम महादेव पड़ गया। बिजली महादेव की यात्रा एक रोमांचक अनुभव है।
बिजली महादेव के मंदिर के समीप जो पौराणिक वर्णन लिखा है...
"श्री भगवान शिव का सर्वोत्तम तपस्थान (मथान) 7874 फीट की ऊंचाई पर है। श्री सदा शिव इस स्थान पर तप योग समाधि द्वारा युग-युगांतरों से विराजमान हैं। सृष्टि में वृष्टि को अंकित करता हुआ यह स्थान बिजली महादेव जालंधर असुर के वध से संबंधित है। इसे कुलान्त पीठ भी कहा गया है। सात परोली भेखल के अंदर भोले नाथ दुष्टांत भावी, मदन कथा से नांढे ग्वाले से संबंधित है।
यहां हर वर्ष आकाशीय बिजली गिरती है। कभी ध्वजा पर तो कभी शिवलिंग पर। जब पृथ्वी पर भारी संकट आन पडता है तो भगवान शंकर जीवों का उद्धार करने के लिये पृथ्वी पर आए भारी संकट को अपने ऊपर बिजली प्रारूप द्वारा सहन करते हैं। यही कारण है कि बिजली महादेव यहां विराजमान हैं।"
बिजली महादेव मंदिर ब्यास नदी के किनारे स्थित है। यह कुल्लू का एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है। संहार के देवता, शिव को समर्पित यह मंदिर समुद्र तल से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर भारत के उत्तर में हिमालय की तलहटी में रहने वाले लोगों का विशेष आराधना स्थल है। मंदिर स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता है। यह मंदिर 60 फीट लंबे स्तंभ के लिए प्रसिद्ध है।
लोक आस्था के अनुसार, मंदिर के अंदर रखी मूर्ति शिव का प्रतीक 'शिवलिंग', बिजली की वजह से कई टुकड़े में बंट गई थी। बाद में मंदिर के पुजारियों ने टुकड़े एकत्र किये और उन्हें मक्खन की मदद से जोड़ दिया।
शिवलिंग के हिस्से जोड़ने का यह समारोह प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इस मंदिर तक पहुंचने का रास्ता कठिन चढ़ाई वाला है। यहां देवदार के पेड़ हैं। मंदिर से पार्वती और कुल्लू घाटी के सुंदर दृश्यों को देखा जा सकता है।
ब्यास और पार्वती नदी के संगम कुल्लू से दस किलोमीटर दूर एक स्थान है भून्तर। यह मंडी की तरफ है। यहां पर एक तरफ से ब्यास नदी आती दिखती है और दूसरी तरफ से पार्वती नदी। दोनों की बीच एक पर्वत है। इसी पर्वत की चोटी पर स्थित है बिजली महादेव।
बिजली महादेव से कुल्लू भी दिखता है और भून्तर भी। दोनों नदियों का शानदार संगम भी दिखता है। दूर तक दोनों नदियां अपनी-अपनी गहरी घाटियों से आती दिखती हैं। दोनों के क्षितिज में हिमालय की बर्फीली चोटियां भी दिखाई देती हैं।
यूं तो इस स्थल पर साल भर स्थानीय लोगों और देशी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन श्रावण माह में यहां एक विशाल मेले का आयोजन होता है। श्रावण महीने में यहां अच्छी-खासी भीड़ रहती है।
बिजली महादेव मंदिर...
हर साल सावन में शिवलिंग पर बिजली गिरती है। शिवलिंग टूटकर टुकडे-टुकडे होकर बिखर जाता है। फिर उसे मक्खन से जोड़ा जाता है।
बिजली महादेव का मंदिर जिले के प्रमुख देवस्थलों में से एक है। यहां पहुंचकर श्रद्धालुओं को प्रकृति का खूबसूरत नजारा भी देखने को मिलता है। इस नजारे को देखकर कश्मीर का एहसास हो जाता है।
साभार : सफर हैं सुहाना, फेसबुक..
कितनी विचित्रतायें समाई हैं यहाँ -परिचित कराने हेतु आभार!
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