Monday, May 21, 2012

ज्वाला देवी शक्ति पीठ


संसार में आस्तिक हैं तो नास्तिक भी हैं जो ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते हैं. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा ज्वाला देवी का मंदिर माता का ऐसा स्थान है जो नास्तिक को भी ईश्वर के अस्तित्व का एहसास कराता है. माता का यह शक्ति पीठ सदियों से परम सत्ता के अस्तित्व को साक्षात दर्शा रहा है. यह मंदिर अपने आप में अनूठा एवं अनुपम है. यहां माता का निराकार रूप एक अग्नि पुंज के रूप में मौजूद है जिसे ज्वाला देवी के नाम से भक्तगण पुकारते हैं.  

हिमाचल का शक्तपीठ | Himachal Shakti Peeth


हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है. यहां का मनोरम दृश्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. हिमाचल प्रदेश में कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं. हिमाचल में ही माता के कई शक्ति पीठ हैं जिनमें नैना देवी, वज्रेश्वरी एवं ज्वाला देवी का नाम आता है. देवों की स्थली होने के कारण हिमाचल को देव घाटी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि हिमाचल की घाटियों में आज भी देवी-देवता भ्रमण के लिए आते हैं. इस सुन्दर प्रदेश में स्थित माता ज्वाला का मंदिर समुद्र तल से लगभग 610 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है.  


ज्वाला माता की कथा | Jwala Mata Katha in Hindi

ज्वाला माता की उत्पत्ति की कथा है कि एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया. पिता का बुलावा नहीं आने के बावजूद देवी सती हठ करके राजा दक्ष के यज्ञ में शामिल होने पहुंच गयीं. वहां समस्त देवताओं के समक्ष दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री सती एवं दामाद भोलेनाथ का अपमान किया. पिता के इस व्यवहार से कुपित होकर देवी सती ने यज्ञ कुण्ड में कूद कर प्राण त्याग दिये. भगवान शंकर को जब इस बात का ज्ञन हुआ तो उन्होंने अपने जटाओं से वीरभद्र को प्रकट किया और दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट करने की आज्ञा दे दी. वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ स्थल को नष्ट कर दिया तथा दक्ष प्रजापति का सिर काट दिया.  



इसके पश्चात भगवान शंकर सती का शव अपने कंधे पर लेकर त्रिलोक में लिये भटक रहे थे तब शिव का मोह भंग करने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर जगत पालक भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी सती के अंग को 52 खंडों में विभक्त कर दिया. देवी सती के अंग जहां भी गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाया. शक्ति स्थल शक्ति की अराधना के केन्द्र बन गये. इन स्थानों पर माता का साक्षात वास माना जाता है. हिमाचल में कालीधार पहाड़ी पर माता की जिह्वा गिरी थी. यही स्थान ज्वाला देवी के नाम से विख्यात है.  

ज्वाला माता की ज्वाला | Jawala Mata's Flame




ज्वाला माता की ज्वाला की उत्पत्ति के विषय में बाबा गोरखनाथ की कथा इस क्षेत्र में काफी प्रचलित है. माना जाता है कि बाबा गोरखनाथ इसी स्थान पर माता की तपस्या किया करते थे. एक बार इन्हें भूख लगी तो इन्होंने माता से कहा कि वह गांव से अनाज मांग कर लाते हैं तब तक आप अग्नि जलाकर पानी गर्म कीजिए. गोरखनाथ के जाने के बाद माता अग्नि जलाकर पानी उबालने का प्रबंध करने लगीं. इसी समय कलियुग शुरू हो गया और बाबा गोरखनाथ लौटकर नहीं आए. उस समय से माता अग्नि जलाकर बाबा गोरखनाथ के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं. ज्वाला माता के मंदिर में प्राकृतिक रूप से बिना तेल, बाती के मौसम कैसा भी हो ज्वाला देवी की ज्वला प्रज्जवलित रहती है. 

इस मंदिर में नौ देवियां ज्वाला रूप में सदा निवास करती हैं. मुख्य ज्वाला जो चांदी के जाला के बीच स्थित है उसे महाकाली कहते हैं. अन्य ज्वाला के रूप में अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी निवास करती हैं.  

ज्वाला माता के मंदिर में अकबर हुआ नतमस्तक | Jwala Mata Mandir : Akhbar Bowed his Head


मुगल सम्राट अकबर के समय माता का एक भक्त हुआ ध्यानु. ध्यानु अपने साथियों के साथ एक बार ज्वाला माता के मंदिर मे उनके दर्शनों के लिए निकला. अकबर के सैनिकों ने उन्हें बंदी बना लिया और उनसे पूछा कि तुम लोग कहां जा रहे हो. माता के भक्त ने कहा कि वह ज्वाला देवी के मंदिर में उनके दर्शनों के लिए जा रहा है. अकबर ने ध्यानु से कहा कि तुम्हारी माता क्या कर सकती हैं. इस पर ध्यानु ने कहा कि माता सर्वशक्तिमान हैं वह सब कुछ कर सकती हैं.  
अकबर ने ध्यानु जी के घोड़े का सिर कटवा दिया और बोला कि क्या तुम्हारी माता इस घोड़े का कटा सिर वापस घोड़े के सिर से जोड़ सकती हैं. इसके बाद अकबर ने माता की ज्योति को बुझाने के लिए उस पर पानी भी डलवाया. पवित्र ज्योति के पास अकबर ने एक नहर भी बनवाया ताकि उसके पानी से ज्योति बुझ जाये. ज्वाला को बुझाने का अकबर का सारा प्रयास विफल हो गया. घोड़े का सिर भी वापस घोड़े के धड़ से जुड़ गया. अकबर को तब ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ. दिल्ली लौटकर उसने सवा मन सोने का छत्र बनवाया और माता से माफी मांगने के लिए सपरिवार छत्र भेंट करने माँ के दरबार में आया.  

ज्वाला माता का मंदिर | Jwala Mata Temple


ज्वाला माता के मंदिर में चट्टानों के बीच से नौ दिव्य ज्वालाएं प्रज्जवलित होती रहती हैं. इस मंदिर में इन्हीं पवित्र ज्वालाओं की पूजा की होती है. मंदिर के पास ही 'गोरख डिब्बी' है जहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता किन्तु छूने पर ठंढ़ा लगता है. ज्वाला देवी के मंदिर का निर्माण कांगड़ा के राजा भूमिचंद ने करवाया था. मान्यता है कि इस क्षेत्र में एक किसान के पास एक गाय थी. किसान जब गाय का दूध निकालने जाता तो गाय के थन में दूध नहीं होता था. किसान इसका कारण ��ूंढने के लिए एक दिन गाय के साथ-साथ गया. उसने देखा कि गाय एक स्थान पर रूक गयी वहां एक अद्भुत कन्या उस गाय का दूध पी रही है.
 
किसान लौट कर चला आया और राजा को आकर सारी बात बतायी.  राजा ने अपने सैनिकों को उस स्थान पर भेज कर सब हाल पता करने के लिए कहा. रात में राजा को सपने में काली माता ने दर्शन दिया और कहा कि वह उस स्थान पर ज्वाला रूप में निवास करती हैं वहां एक मंदिर बनवाओ. वर्तमान मंदिर का जिर्णोद्धार महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया.  

ज्वाला माता के मंदिर के पास के अन्य मंदिर | Other Temples near Jwala Mata Mandir

ज्वाला माता के मंदिर के पास ही सेजा भवन, लाल शिवालय, सिद्ध नागार्जुन, अम्बिकेश्वर महादेव, राधा कृष्ण मंदिर हैं. यहां से वज्रेश्वरी देवी का मंदिर 30 किलोमीटर है. श्रद्धालु भक्त ज्वाला देवी से वज्रेश्वरी देवी की भी यात्रा कर सकते हैं.  

ज्वाला माता मंदिर की यात्रा | Jwala Mata Mandir Yatra


ज्वाला माता के दर्शन के लिए भक्त पूरे वर्ष में कभी भी यहां आ सकते हैं. यहां भक्तगण सड़क अथवा वायु मार्ग से पहुंच सकते हैं. कुल्लू एवं धर्मशाला में हवाई अड्डा है. यहां पहुंचकर सड़क मार्ग से माता के मंदिर तक आना होता है. रेल मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं तो कालका यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन है. भारत की राजधानी दिल्ली से यह लगभग 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. प्रतिवर्ष यहां भारी संख्या में माता के भक्त दर्शन के लिए आते हैं. नवरात्रे के अवसर पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है. 

साभार : astribix.com, नीरज जाट जी 


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