Tuesday, May 22, 2012

चम्पावत, भगवान विष्णु का कुर्मा अवतार स्थल

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चंपावत का महत्व महज इस वजह से नहीं है कि यह अतीत में कई राजवंशों की राजधानी रहा या प्राचीन शिल्पकला एवं हस्तकला के नमूने आज भी यहाँ मौजूद हैं। उसका महत्व इस रूप में आँका जाना चाहिये कि आज के भाग-दौड़ वाले जीवन में भी यहाँ शांति, प्राकृतिक सौंदर्य एवं धार्मिक व आध्यात्मिक स्थल यथावत बचे हुए हैं। मगर गगनचुंबी पर्वत श्रृंखलाओं और बाँज-बुरूँश, चीड़ व देवदार के सघन वनों के नयनाभिराम दृश्यों के बावजूद यहाँ पर्यटन विकसित नहीं हो पाया है।
चंद व कत्यूरी शासकों के यहाँ से शासन करने के दौरान निर्मित अनेक ऐतिहासिक स्मारक व धार्मिक स्थल आज भी मौजूद हैं। जिला मुख्यालय के चारों ओर बालेश्वर, मानेश्वर, सप्तेश्वर, डिप्टेश्वर, रिखेश्वर, क्रांतेश्वर, मल्लाडेश्वर, तारकेश्वर, घटोत्कच मंदिर, एकहथिया नौला, राजबुंगा का किला, चौपड़ खेलने का स्थल, नौ ढूँगा मकान आदि के भग्नावशेषों में उच्चकोटि की शिल्पकला एवं स्थापत्य है, जो आस्था के साथ शोध के लिये भी महत्वपूर्ण है। यदि शासन स्तर पर साहसिक पर्यटन को बढावा देने का प्रयास किया जाए तो चारों ओर के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों में हैंड ग्लाइडिंग व माउंटेनियरिंग के लिए स्थल विकसित किए जा सकते हैं। प्रख्यात अंग्रेज शिकारी जिम कार्बेट ने यहाँ एक आदमखोर का शिकार भी इसी क्षेत्र में किया था। जनपद में सांस्कृतिक मेलों व उत्सवों आदि का आयोजन होता रहता है, जिनमें कुटीर उद्योग के रूप में स्थानीय हस्तकला की अनेक वस्तुएँ बिकने आती हैं। हालाँकि क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही कम होने से शिल्पकला को समुचित बाजार नहीं मिल पा रहा है।
बहुचर्चित उत्तरमुखी गंडक नदी भी जिला मुख्यालय से होकर बहती है। कुमाऊँ शब्द का जन्म भी चंपावत में ही हुआ है। कुमाऊँ संस्कृत के कूर्म शब्द का अपभ्रंश है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु का कूर्म अवतार चंपावत क्षेत्र में ही हुआ था। इतिहासकार बद्रीदत्त पांडे ने विष्णु का कूर्मावतार स्थल चंपावत की कानदेव क्रांतेश्वर पर्वत चोटी पर बताया है। मानस खंड में 63वें अध्याय की शुरूआत में भी कूर्मांचल पर्वत का जिक्र आया है। कई लोगों का मानना है कि राम रावण संग्राम के दौरान कुंभकर्ण का सिर कटकर चंपावत क्षेत्र में जा गिरा था, जिसके चलते इस क्षेत्र को कुंभू और बाद में कूमू कहा गया। भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कूर्म अथवा कछुवे का हुआ था। कहा जाता है कि यह अवतार चंपावती नदी के पूर्व में कूर्म पर्वत में तीन साल तक खड़ा रहा। उस कूर्म अवतार के चरणों का चिन्ह पत्थर में हो गया। तबसे इस पर्वत का नाम कूर्माचल हो गया। कूर्माचल का प्राकृत रूप बिगड़ते-बिगड़ते कुमू बना और यही शब्द बाद में कुमाऊँ हो गया। चंदों की राजधानी यहाँ से अल्मोड़ा जाने से पहले तक चंपावत और आसपास के इलाकों को ही कुमू कहा जाता था। बाद में चंदों के राज्य विस्तार के साथ कूर्माचल को वर्तमान कुमाऊँ कमिश्नरी के नाम से जाना जाने लगा। मगर इलाके की आम बोलचाल में कुमू और कुमइयाँ का अर्थ आज भी चंपावत और चंपावत के बाशिंदों से माना जाता है।

साभार : सतीश जोशी, नैनीताल समाचार 

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