बर्फ का घर
ॐ पर्वत |
भगवान श्री कृष्ण ने भगवद गीता में कहा है कि सब पहाडों में मैं हिमालय हुं। स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा है कि भारत देवी-देवताओं का देश है और वह देवभूमि हिमालय पर वास करते हैं। अधिकतर तीर्थस्थल रमणीय स्थानों पर होते हैं। जहां पर पहाडों से निकलती नदियां, छोटे-छोटे टापू अद्वितीय दृश्य प्रस्तुत करते हैं जो तीर्थयात्रा के आनंद को बढ़ाते हैं। तीर्थस्थलों की सुन्दरता का वर्णन पुराणों में भी किया गया है। वृहत पुराण में तीर्थस्थलों के बार में लिखा हुआ है। भगवान केवल वहीं वास करते हैं जहां झील होती हैं, कमल की पत्तियां सूरज की किरणों को रोकती हैं, हंस पानी में अठखेलियां करते हैं और उनके कोमल शरीर का स्पर्श पाकर कमल के फूल पानी में लहराते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं में हिमालय का वर्णन बहुत मिलता है। महाभारत और रामायण के साथ अनेक पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है। पंचचुली रेंज की पांच चोटियां को पाण्डवों का प्रतीक माना जाता है। पुराणों के अनुसार उत्तराखंड में स्थित गंधामदन पर्वत स्वर्ग का फूलों का बगीचा है। रामायण के अनुसार यह वही पर्वत है जिस पर संजीवनी बूटी होती है। अब यह एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय पार्क है। यह कई नदियों का उदगम स्थल है जिसमें पवित्र गंगा भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी को भगवान की घाटी भी कहा जाता है। इस घाटी में 350 से अधिक मंदिर है। हिमाचल प्रदेश के छोटे से नागर गांव में ही चार मदिंर हैं। इन चारों मंदिरों की परिक्रमा को चार धाम की यात्रा के तुल्य माना गया है। यहां लगभग प्रत्येक पर्वत पर एक तीर्थ स्थल है। यहां के प्रत्येक रास्ते, जंगल और चोटी से एक कहानी जुडी हुई है। इन कहानियों में हिंदू दंत कथाओं के साथ-साथ बौद्ध और सिक्ख धर्म की कहानियां भी जुडी हुई है। वास्तव में यह स्थान रोमांच पसंद करने वाले और तीर्थ यात्रा पर आने वाले दोनों के लिए एक आदर्श जगह है।
यह स्थान 600000 वर्ग किमी में फैला हुआ है। यह संसार की सबसे नवीन पर्वतमाला है। यह 6 मिमी. प्रति साल की दर से अभी भी बढ़ रही है। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव को छोड दिया जाए तो यह संसार का सबसे बडा बर्फीला क्षेत्र है। इस कारण इसे बर्फ का घर भी कहा जाता है। इसका बर्फीला क्षेत्र 45000 वर्ग किमी में फैला हुआ है। जो भी दर्शनशास्त्री, बुद्धिजीवी या पर्यटक यहां आता है उसकी तीर्थयात्रा अपने आप हो जाती है। जिन साहसी पर्वताराहियों ने हिमालय को फतह किया है उनका भी कहना है कि हिमालय पर आना उनकी आत्मा को शांति प्रदान करता है।
पुराणों में वर्णित केदारखण्ड इन सब बातों से थोडा अलग है। जो पर्यटक केदारखण्ड आते है उनका केवल एक ही मकसद होता है। वह यहां केवल अपने पुज्य देवता के दर्शन करने के लिए आते हैं। यह माना जाता है कि यह मंदिर विश्व के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है। लोग यहां केवल प्रायश्चित के लिए आते हैं। आदि कैलाश पर्वतमाला की परिक्रमा शुरू करने पर आप शिन ला मार्ग से डारमा पहुंचते हैं और वापस आने के लिए कूथी याकंती घाटी वाला रास्ता प्रयोग करते हैं। यहां से आगे चलकर आप काली गंगा पहुंचते हैं। इन सब जगहों के दर्शन के बाद ही आपकी आदि कैलाश यात्रा पूरी मानी जाती है। यह परिक्रमा बहुत मुश्किल से पूरी होती है क्योंकि शिन ला मार्ग बहुत ऊचांई पर होने के साथ-साथ बर्फ से ढका रहता है। इसके बावजूद यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है। अधिकतर तीर्थयात्री जौलिंगकोंग मार्ग से बैलगाडी द्वारा काली गंगा पहुंचते हैं। यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए शुरू में संसाधनों का अभाव था। लेकिन सरकार और तीर्थयात्रियों के प्रयासों से काफी बाधाओं को हटा दिया गया है। यहां विदेशी पर्यटक भी बडी संख्या में आते हैं।
आदि कैलाश को छोटा कैलाश के नाम से जाना जाता है और पार्वती सरोवर को गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। इन दोनों तीर्थस्थलों को कैलाश पर्वत और तिब्बत की मानसरोवर झील के समतुल्य माना जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलाश यात्रा को सबसे अधिक पवित्र यात्रा माना जाता है। रास्ते में मनमोहक ओम पर्वत पड़ता है। इस पर्वत की खासियत यह है कि यह गौरी कुंड जितना ही सुन्दर है और इस पर्वत पर जो बर्फ जमी हुई है वह ओम के आकार में है। इस स्थान मे वह शक्ति है जो यहां आने वाले नास्तिक को भी आस्तिक में बदल देती है। गुंजी तक इस तीर्थस्थल का रास्ता भी कैलाश मानसरोवर जसा ही है। गुंजी पहुंचने के बाद तीर्थ यात्री लिपू लेख पास पहुंच सकते हैं। इसके बिल्कुल पीछे चीन पडता है। आदि कैलाश यात्रा करने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है। इस परमिट को धारचुला के न्यायधीश के कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है। परमिट प्राप्त करने के लिए पहचान-पत्र और अपने गंतव्य स्थलों की सूची न्यायधीश को देनी होती है। आदि कैलाश यात्रा के लिए बहुत सारी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है। जिनमें बहुत सारी पासपोर्ट साइज फोटो की आवश्यकता होती है। अत: आपके पास कई पासपोर्ट साइज फोटो होनी चाहिए। परमिट प्राप्त करने के बाद बुद्धि के रास्ते गुंजी पहुंचना होता है। इसके बाद जौलिंगकोंग के लिए आगे की यात्रा शुरू की जा सकती है। जौलिंगकोंग से आदि कैलाश और पार्वती सरोवर थोडी ही दूर पर है। वहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। आदि कैलाश तीर्थस्थल कुमांउ के पिथौरागढ जिले में है। यह तिब्बत की सीमा के निकट है।
कैसे पहुंचे
आदि कैलाश पहुंचने के लिए रेल मार्ग अच्छा विकल्प है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन इसके सबसे नजदीक है। यहां पहुंचने के बाद आदि कैलाश के लिए टैक्सी और बसें ली जा सकती हैं। रेलवे स्टेशन से आदि कैलाश 190 किमी. दूर है। यहां पहुंचने के लिए लगभग 7 घंटे लगते हैं। पिथौरागढ देश के विभिन्न भागों से अच्छी तरह जुडा हुआ है। यहां आने के लिए सडक मार्ग भी अच्छा विकल्प है। यहां निजी वाहनों और सार्वजनिक वाहनों द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। आदि कैलाश तीर्थस्थल भारत और नेपाल की सीमा से सटा हुआ है। सामान उठाने के लिए तवा घाट से कूली और सैर कराने के लिए गाइड किराये पर लिए जा सकते हैं। के.एम.वी.एन. टूर एजेंसी आदि कैलाश यात्रा आयोजित करती है। यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए 15,200 रू. शुल्क लेते हैं। आदि कैलाश यात्रा के लिए यह अच्छा विकल्प है।
साभार : ऋतुराज पांचाल ,यात्रा सलाह
अपुन को भी एक दिन यहाँ जरुर जाना है
ReplyDeleteword verification हटा दो
संदीप जी साथ साथ चलेंगे।
Deleteजब ओन लाइन हो तो फोन करना बता दूँगा, या अपने ब्लॉग की सेट्टिंग में जाकर कमेन्ट के आप्शन पर जाना वहा से आपको ये आप्शन नजर आएगा, उसे नेवर पर कर सेव सेट्टिंग कर देना, फिर भी ना हो तो फोन कर लेनA 09716768680/08800619119
ReplyDeleteThankyou Sir....
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteoum parvat is a very beautiful place of india..... it is really nice to see information about this
ReplyDelete