Saturday, June 16, 2012

बारह हजारी के अंदर दुर्गा मां का मंदिर




नवरात्रों में दुर्गा मां के विभिन्न रूपों की आराधना श्रद्धापूर्वक की जाती है। हरियाणा में ही नहीं बल्कि समस्त भारत में स्थित शक्ति स्वरूपा के मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ आती है। कई मंदिरों में तो श्रद्धालुओं को लंबी कतारों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। हिन्दू धर्म में त्रिदेवों [ब्रह्मा, विष्णु व महेश] को सबसे बड़े देव माना गया है और 33 करोड़ अन्य देवी-देवताओं का भी अस्तित्व बताया गया है। धर्मग्रंथों में वर्णित है कि इन सभी की शक्ति का स्त्रोत शक्ति स्वरूपा आदि शक्ति मां दुर्गा ही हैं जिनके तेज से सूर्य चमकता है और सृष्टि में जीवन का संचार हो रहा है। कितनी बार दुर्गा माता के अनेक रूपों ने संसार पर आने वाली विपदाओं को दूर किया है, इसीलिए उन्हें जगकल्याणी कहा जाता है।
शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के प्रति संपूर्ण भारत के निवासियों की अगाध आस्था है। भारतवर्ष के विभिन्न भागों में बने मां दुर्गा के भव्य मंदिरों में उमड़ने वाली भीड़ मां के प्रति श्रद्धालुओं की अगाध आस्था, अटूट विश्वास एवं अनन्य भक्ति भावना को प्रकट करती है।
हरियाणा में भी दुर्गा माता के अनेक प्राचीन धाम और दर्शनीय मंदिर स्थापित हैं जिनमें श्रद्धालु मन्नत मांगने काफी संख्या में नित्य जाते रहते हैं। हरि के प्रदेश हरियाणा के प्रसिद्ध शहर रेवाड़ी में बारह हजारी मोहल्ले में वर्ष 1962 में बने मां दुर्गा मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। इसमें स्थापित प्रतिमाएं जहां मुंहबोलती प्रतीत होती हैं, वहीं इसके भवन की शान अलग ही दिखती है। मां दुर्गा के मंदिर में जब श्रद्धालु जयकारे लगाते हुए चलते हैं तो मंदिर का वातावरण भक्ति से सराबोर हो जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां दुर्गा के इस मंदिर में मां दुर्गा के त्रिशूल पर जो भी व्यक्ति सच्चे मन से धागा बांधता है उसे मां की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। नि:संतान दंपति दुर्गा मां का आशीर्वाद पाने के लिए यहां अक्सर आते रहते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि दुर्गा मां उनकी आराधना से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं। मंदिर के पुजारी नरेंद्र शर्मा का कहना है कि मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु मां दुर्गा की आराधना करने के लिए यहां बार-बार आते हैं।
दुर्गा मां के इस भव्य मंदिर के पूर्व एवं उत्तर में दो द्वार हैं। इस मंदिर में मां दुर्गा की शेर पर बैठी एक विशाल मूर्ति स्थापित है जिसके पूर्व में शिवालय और भैरू की मूर्तियां स्थापित हैं। इस मंदिर में भैरू की अखंड जोत जलती रहती है। श्रद्धालु मां दुर्गा के साथ-साथ भैरू की पूजा-अर्चना भी करते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां मां दुर्गा की उपासना के बाद भैरू की उपासना न की जाए तो धोक पूर्ण नहीं होती है, इसलिए सभी श्रद्धालु भैरू की अखंड जोत के आगे धूप लगाकर नतमस्तक होते हैं और भैरू बाबा की कृपा प्राप्त करते हैं ताकि मां दुर्गा उनकी मुराद पूरी करें।
मां दुर्गा की विशाल मूर्ति के पश्चिम में पवनपुत्र हनुमान और राधा-कृष्ण की मनमोहक मूर्तियां स्थापित की गई हैं। दुर्गा मां के इस मंदिर में हर वर्ष 11, 12 व 13 मार्च को मां दुर्गा की विशेष रूप से आराधना की जाती है। पुजारी नरेंद्र शर्मा का कहना है कि इस दौरान मां दुर्गा का जन्मदिन हर्षोल्लास से मनाया जाता है। मां का भव्य दरबार सजाया जाता है और भक्ति गीतों से मां का गुणगान किया जाता है। महिला मंडल द्वारा हर मंगलवार को कीर्तन किया जाता है। हर महीने के आखिरी रविवार को मंदिर परिसर में रामायण के सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। इस अवसर पर दूर-दूर से आकर श्रद्धालु मां दुर्गा के चरणों में अर्जी लगाते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां दुर्गा इस मंदिर में साक्षात् विराजमान रहती हैं। लगभग 20 वर्ष से लगातार मां दुर्गा का श्रृंगार करने वाली उमरावती नामक महिला का कहना है कि मां दुर्गा की प्रतिमा को एकटक निहारने पर ऐसा एहसास होता है जैसे मां साक्षात् बैठकर अपने भक्तों के दुखड़ों को दूर कर रही हैं। इस दौरान मां अपने कई रूप बदलती हैं। उमरावती का कहना है कि यहां पर सच्चे मन से मांगी गई मुराद कभी निष्फल नहीं होती। यही कारण है कि यहां नवरात्रों के दौरान भीड़ का पारावार नहीं रहता है। श्रद्धालु मां दुर्गा की जय-जयकार करते हुए आगे बढ़ते हैं और मंदिर में धोक लगाते हैं। मां दुर्गा प्रचार मंडल के प्रधान कुलदीप राज हैं और उन्हीं की देखरेख में मंदिर का काम सुचारु रूप से चल रहा है।
मंदिर के प्रचार मंडल द्वारा हर वर्ष 14 मार्च को मां दुर्गा की झांकी निकाली जाती है। इस अवसर पर जागरण व विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। भंडारे व जागरण में श्रद्धालु बढ़-चढ़कर शिरकत करते हैं। मां दुर्गा के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण ही वर्तमान में मंदिर का भव्य भवन तैयार हुआ है।

साभार : दैनिक जागरण 

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