Saturday, June 16, 2012

चंद्रकोणा गुरुद्वारा




चंद्रकोणा गुरुद्वारा-खडगपुर से लगभग 97 किमी. दूर पश्चिमी मेदिनीपुर जिला स्थित है चंद्रकोणा गुरुद्वारा।
सिक्खो के प्रथम पातशाह श्रीगुरुनानक देव के कारण आराध्य स्थल है। अपनी दूसरी देशव्यापी धार्मिक यात्रा के क्रम में उत्तर प्रदेश के अयोध्या से होते हुए बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी-बनारस के रास्ते हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थल गया से गुजरते हुए सिक्खो के पहले गुरु नानकदेव 1510 ईसवी में भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी जाने के क्रम में चंद्रकोणा पहुंचे और वहीं अपना डेरा जमाया। यही कारण है कि आज यह स्थल पश्चिम बंगाल के सिक्ख समाज के लिए पाकिस्तान के ननकाना साहिब से कम नहीं है।
कहा जाता है कि प्राकृतिक सौंदर्य के बीच गुरु नानक का मन तो रम गया परंतु वहां के लोग उनकी भाषा नहीं समझ पा रहे थे। इस बीच एक अंधा वहां पहुंचा और उनकी बोली सुनकर ग्रामीणों को बताया कि यह गुरु नानक देव हैं। गुरु के साथ उनके प्रिय शिष्य बाला और मरदाना भी थे। गुरु ने अलौकिक कृपा का चमत्कार दिखाते हुए अंधे को ज्योति प्रदान कर दी, तो बाबा की ख्याति चारों ओर फैलने लगी। ज्योति मिलने के बाद अंधे व्यक्ति ने बाबा का स्वरूप देख अपनी आंखें बंद कर ली और कहा कि जिन नेत्रों से उसने उस अलौलिक स्वरूप को देखा, उससे वह अब कुछ और नहीं देखना चाहता। नानक की महिमा सुन वहां पहुंचे तत्कालीन राजा चंद्रकेतु ने जब अलौकिक आभा वाले नानक देव को प्रणाम किया तो उन्होंने आशीर्वाद दिया परंतु इसके बाद भी राजा उनके चरणों से उठे नहीं तो बाबा ने मन की बात मन में ही समझते हुए पुत्र संतान का वरदान दिया था। राजा ने अपनी संतान का नाम श्रीचंद्र रखा।
नानक देव की महिमा से चंद्रकेतु ने इलाके की सारी भूमि उनको दान कर दी और आज भी वहां की जमीन गुरु ग्रंथ साहिब के नाम पर है। हालांकि वर्तमान समय में 10-12 एकड़ भूमि ही गुरुद्वारा के पास है। गुरुद्वारे के पास ही भगवान विष्णु व शिव के मंदिर स्थित हैं। चंद्रकोणा गुरुद्वारे में यूं तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को अरदास के लिए भक्तों का जमावड़ा लगता है किंतु दिसंबर की पूर्णिमा को यहां विशेष समारोह होता है। इसमें भाग लेने के लिए प. बंगाल के अलावा झारखंड, बिहार व ओडि़शा से भी लोग पहुंचते हैं। खडग़पुर से दूरी लगभग 97 किमी. उसके बाद ट्रेन अथवा सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। चंद्रकोणा रोड से गुरुद्वारे तक की दूरी लगभग 20 किमी. है। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से यहां आने वाले भक्तों के लिए गुरुद्वारा परिसर में ही रहने की व्यवस्था की जाती है।

साभार : दैनिक जागरण 


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