Wednesday, September 5, 2012

हसीन वादियों के बीच भक्ति रजरप्पा


 झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर धार्मिक महत्व के साथ पर्यटन के लिहाज से भी अनुपम स्थान है। प्रकृति के सुरम्य नजारों के बीच बसा भक्ति का यह पावन स्थान कई खूबियां समेटे है। यह धर्म क्षेत्र सैलानियों को पहली नजर में ही लुभाता है। रामगढ़ जिले में स्थित यह क्षेत्र कोयला उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। रामगढ़ को बोकारो व धनबाद से जोड़नेवाले राष्ट्रीय राजमार्ग 23 पर रामगढ़ से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा मोड़ है। इस मोड़ से बोकारो शहर की दूरी 58 किलोमीटर है, जबकि मोड़ से रजरप्पा मंदिर की दूरी 10 किलोमीटर है। मोड़ पर बना बड़ा सा प्रवेश द्वार यहां पहुंचते ही सैलानियों का स्वागत करता है। मंदिर की ओर बढ़ते ही सड़क के दोनों ओर जंगल और छोटी-छोटी पहाडि़यों की श्रृंखला प्रकृति के अनुपम नजारों के साथ अपनी विशिष्टता का बोध कराती है। प्राचीन काल में यह स्थान मेधा ऋषि की तपोस्थली के रूप में जाना जाता रहा है। हालांकि वर्तमान में उनसे जुड़ा कोई चिन्ह यहां नजर नहीं आता। श्रीयंत्र का स्वरूप छिन्नमस्तिका दस महाविद्याओं में छठा रूप मानी जाती है। यह मंदिर दामोदर-भैरवी संगम के किनारे त्रिकोण मंडल के योनि यंत्र पर स्थापित है, जबकि पूरा मंदिर श्रीयंत्र का आकार लिए हुए है। लाल-नीले और सफेद रंगों के बेहतर समन्वय से मंदिर बाहर से काफी खूबसूरत लगता है। इसी परिसर में अन्य नौ महाविद्याओं का भी मंदिर बनाया गया है। मुख्य मंदिर में देवी छिन्नमस्तिका की काले पत्थर में उकेरी गई प्रतिमा विराजमान है। दो साल पहले मूर्ति चोरों ने यहां मां की असली प्रतिमा को खंडित कर आभूषण चुरा लिए थे। इसके बाद यह प्रतिमा स्थापित की गई। पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो पुरानी अष्टधातु की प्रतिमा 16वीं-17वीं सदी की थी, उस लिहाज से मंदिर उसके काफी बाद का बनाया हुआ प्रतीत होता है। मुख्य मंदिर में चार दरवाजे हैं और मुख्य दरवाजा पूरब की ओर है। इस द्वार से निकलकर मंदिर से नीचे उतरते ही दाहिनी ओर बलि स्थान है, जबकि बाईं और नारियल बलि का स्थान है। इन दोनों बलि स्थानों के बीच में मनौतियां मांगने के लिए लोग रक्षासूत्र में पत्थर बांधकर पेड़ व त्रिशूल में लटकाते हैं। मनौतियां पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है। मंदिर में उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए छिन्नमस्तिका के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। शिलाखंड में देवी की तीन आंखें हैं। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। बाल खुले हैं और जिज्ज बाहर निकली हुई है। आभूषणों से सजी मां नग्नावस्था में कामदेव और रति के ऊपर खड़ी हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक लिए हैं। इनके दोनों ओर मां की दो सखियां डाकिनी और वर्णिनी खड़ी हैं। देवी के कटे गले से निकल रही रक्त की धाराओं में से एक-एक तीनों के मुख में जा रही है। कुंडों की महत्ता यहां मुंडन कुंड पर लोग मुंडन के समय स्नान करते हैं जबकि पापनाशिनी कुंड को रोगमुक्ति प्रदान करनेवाला माना जाता है। सबसे खास दामोदर और भैरवी नदियों पर अलग-अलग बने दो गर्म जल कुंड हैं। नाम के अनुरूप ही इनका पानी गर्म है और मान्यता है कि यहां स्नान करने से चर्मरोग से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा दुर्गा मंदिर (लोटस टेंपल) के सामने भी एक तालाबनुमा कुंड है, जिसे कालीदह के नाम से जाना जाता है। इसका प्रयोग भी लंबे समय तक स्नान-ध्यान, पूजा के लिए जल लेने आदि कायरें के लिए होता रहा पर फिलहाल प्रयोग कम होने के कारण कुंड का पानी गंदा हो गया है। विराट शिवलिंग छिन्नमस्तिका के मंदिर से सटा शिव का मंदिर है जहां 15 फीट ऊंचा विशाल शिवलिंग पूजा-पाठ के साथ पर्यटकों के लिए भी खास आकर्षण का केंद्र है। मंदिर परिसर में ही 10 महाविद्याओं का मंदिर अष्ट मंदिर के नाम से विख्यात है। यहां काली, तारा, बगलामुखी, भुवनेश्वरी, भैरवी, षोडसी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, मातंगी और कमला की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसके अलावा सूर्य का भव्य मंदिर व दुर्गा मंदिर भी आसपास ही हैं। सफेद संगमरमर से कमल के आकार का बना दुर्गा मंदिर अपनी भव्यता के कारण लोटस टेंपल के नाम से जाना जाता है। यहां देवी दुर्गा के अपराजिता स्वरूप की पूजा होती है। विराट मंदिर में कृष्ण के विराट रूप की पूजा होती है। यह प्रतिमा 25 फीट की है। इन दोनों मंदिर के बीच लक्ष्मी की आठ प्रतिमाएं- ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, विजया लक्ष्मी, वीरा लक्ष्मी व जया लक्ष्मी स्थापित हैं। इसके अलावा मनसा, मधुमति, पंचमुखी हनुमान, उतिष्ठ गणपति, भगवान शिव, बटुक भैरव, सोनाकर्षण भैरव आदि देवी-देवताओं के मंदिर भी आसपास ही हैं। बटुक-भैरव मंदिर में अन्य प्रसाद के अलावा मांस-मछली, शराब, सिगरेट आदि का भी भोग लगता है। उपासना के साथ मस्ती रजरप्पा आनेवाले पर्यटक नौका सैर का आनंद लेना नहीं भूलते। मंदिर के नीचे दामोदर-भैरवी संगम के पास नाव की सवारी की सुविधा है। नौका पर बैठ नदी की लहरों पर दूर तक सवारी करना और झरने के पास जाकर प्राकृतिक फव्वारे को निहारते हुए तस्वीरें खिंचाना पर्यटन के आनंद को कई गुणा बढ़ा देता है। संगम स्थल में दामोदर नदी के ऊपर भैरवी नदी गिरती है। पत्थरों के बीच से गुजरती नदियां मिलन स्थल पर झरने सा दृश्य उपस्थित करती है, लोग घंटों इस प्रकति के इस खूबसूरत नजारे को निहारते हुए सुखद अनुभूति करते हैं। छठ के मौके पर नदी के दोनों ओर के विभिन्न घाटों को सजाया जाता है। यहां दामोदर और भैरवी को काम और रति का प्रतीक माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दामोदर को नद माना गया है, जबकि भैरवी को नदी। दोनों नदियां यहां मिलने के बाद भेड़ा नदी के नाम से बहते हुए तेनुघाट डैम पहुंचती हैं। मंदिर में दीपावली के समय कालीपूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। इसके अलावा वैशाख चतुर्दशी को छिन्नमस्तिका जयंती पर भी खास आयोजन होते हैं। नवरात्र के समय भी यहां खास अनुष्ठान और उत्सव होते हैं। अमावस्या, पूर्णिमा व अन्य त्योहारों के मौके पर भी विशेष पूजा होती रहती है। शक्तिपीठ होने की वजह से रजरप्पा तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। मंदिर से उत्तर की ओर थोड़ी दूरी पर दामोदर नदी के ऊपर तांत्रिक घाट है जहां तांत्रिक तंत्र साधना करते नजर आते हैं। पूजा का समय मंगला आरती: सुबह 4.30 बजे भोग: दोपहर 12 बजे श्रृंगार व आरती: शाम 7 बजे भीड़ से बचना हो तो: वैसे तो यहां रोज ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है लेकिन रविवार को छु˜ी का दिन व शक्ति उपासना का दिन होने की मान्यता के कारण श्रद्धालुओं की लंबी कतार रहती है। इसके अलावा शादी-विवाह व मुंडन मुहूर्त के समय यहां भारी भीड़ उमड़ती है। आम दिनों में मंदिर में पूजा के लिए ज्यादा भीड़ दोपहर से पहले तक ही रहती है। रांची से आवागमन रांची से रजरप्पा रामगढ़ होकर सीधे जा सकते हैं। वैसे ओरमांझी से गोला होकर व नामकुम से मुरी-सिल्ली होते हुए भी रजरप्पा पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं। राच्य पर्यटन विकास निगम ने रांची से सीधे रजरप्पा के लिए बस सेवा भी शुरू की है। इन बसों का समय रांची से सुबह 8.20 व 9.20 बजे और रजरप्पा से 1.30 व 3 बजे है। रजरप्पा बरकाकाना रेलवे स्टेशन से 40 किलोमीटर, रांची से 80 किमी और बोकारो से 68 किमी दूर है। रुकने के स्थान रजरप्पा आनेवाले लोग ज्यादातर अपने रुकने का इंतजाम आसपास के शहरों- रामगढ़, रांची, बोकारो या धनबाद में करते हैं। मंदिर से 10 किलोमीटर दूर रजरप्पा मोड़ के पास नेशनल हाईवे पर रुकने व खाने-पाने के लिए कई अच्छे होटल हैं। वैसे मंदिर के पास सीसीएल और वन विभाग के गेस्ट हाउस हैं। मंदिर के दूसरी छोर पर जिला परिषद का डाकबंगला भी है, लेकिन इन स्थलों पर रुकने के लिए संबंधित विभाग से अनुमति लेनी होती है। मंदिर परिसर में कई धर्मशालाएं भी हैं जहां उतनी अच्छी सुविधाएं तो नहीं लेकिन जरूरत पड़ने पर लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। मंदिर के पास स्थित छोटे-छोटे कई होटल भी हैं।


साभार : दैनिक जागरण 

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