HISTORY OF KATARMAL MANDIR
Nestled among the thick deodars of these Kumaon hills is the imposing Surya temple. Located at KATARMAL at an altitude of 2116 mt, this quaint temple, built in the 9th century, is relatively unknown as compared to the world-famous sun temple of Konark. Little over one Kilometre ( 0.6 mile ) beyond Katarmal, is Bikut forest, from where a magnificent view of Almora presents itself.
This sun temple is one of the most important temples dedicated to the Sun God. It was built by KATARMALLA, a Katyuri Raja, in the 9th century. In the early medieval period, Kumaon was ruled by the Katyuri dynasty. On a hilltop facing east, opposite Almora, is the temple of Katarmal.
The deity of the sun temple in Katarmal is known as Burhadita or Vraddhaditya (the old Sun God). The temple, noted for its magnificent architecture, artistically made stone and metallic sculptures and beautifully carved pillars and wooden doors, has a cluster of 44 small, exquisitely carved temples surrounding it. The present mandapa of the temple as well as many of the shrines within the enclosure have been constructed much later. The image of Surya in the temple dates back to 12th century (presently preserved at the National museum ,Delhi) . The idols of Shiva-Parvati and Lakshmi-Narayana are also found in the temple. However, the intricately carved doors and panels have been removed to the National Museum in Delhi after the 10th-century idol of the presiding deity was stolen.
But due to the sheer neglect of the authorities the temple and complex is in very bad shape. One feels sorry that a monument of such a historical importance had been left to decay like this. But even than it is a place worth visiting.Though now some restoration work has started , and the government is also making road. The temple is now protected and preserved by the Archeological Survey of India.
Besides Katarmal and Konark, there are three other sun temples in the country - Modhera sun temple in Gujarat, Martand temple in Kashmir and Osia in Rajasthan.
कटारमल का सूर्य मन्दिर अपनी बनावट के लिए विख्यात है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा अर्चना करते रहै हैं। उन्होंने यहाँ की मूर्तियों की कला की प्रशंसा की है।
कटारमल के मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर में बनाई गई है। यह मूर्ती बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल मन्दिर में आंशिक रुप में दिखाई देती है।
कटारमल के सूर्य मन्दिर तक पहुँचने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के रास्ते से जाना होता है। अल्मोड़ा से १४ कि.मी. जाने के बाद ३ कि.मी. पैदल चलना पड़ता है। मन्दिर १५५४ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अल्मोड़ा से कटारमल मंदिर १७ कि.मी. की निकलकर जाता है। रानीखेत से सीतलाखेत २६ कि.मी. दूर है। १८२९ मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है। कुमाऊँ में खुले मैदान के लिए यह स्थान प्रसिद्ध है। कुमाऊँ का यह ऐसा खिला हुआ रमणीय स्थान है यहाँ देश के कोने-कोने से हजारों बालचर तथा एन.सी.सी. के कैडेट अपने-अपने शिविर लगाकर प्रशिक्षण लेते हैं। यहाँ ग्रीष्म ॠतु में रौनक रहती है। प्रशिक्षण के लिए यहाँ पर्याप्त व्यवस्था है। दूर-दूर तक कैडेट अपना कार्यक्रम करते हुए, यहाँ आनन्द मनाते हैं।
साभार : विकी उत्तराखंड., merapahad.com.
अब गाडी़ सड़क भी पहुँचने ही वाली है तीन किलोमीटर नहीं चलना पडे़गा!
ReplyDeleteबढ़िया सैर कराई ,भौगोलिक अवस्थिति समझाई कटारमल सौर्य मंदिर की .शुक्रिया .
ReplyDeleteram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
हाँ !यह भारत है
Great blog thanks for posting
ReplyDeleteVery thoughttful blog
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