Sunday, July 31, 2016

MANDU - मांडू - मध्य प्रदेश में बसा है एक और कश्मीर

मध्य प्रदेश में बसा है एक और कश्मीर



मध्य प्रदेश में स्थित माण्डू का दर्शन वादिये कश्मीर का आभास देता है। यहां हरी-भरी वादियां, नर्मदा का सुरम्य तट ये सब मिलकर माण्डू को मालवा का स्वर्ग बनाते हैं। यहां की माटी के बारे में कहा जाता है कि ‘मालवा माटी गहर-गंभीर। पग-पग रोटी डग-डग नीर।’ अबुल फजल को माण्डू का मायाजाल इतना भ्रमित करता था कि उन्हें लिखना पड़ा कि माण्डू पारस पत्थर की देन है। माण्डू ने मुख्य रूप से चार वंशों का कार्यकाल देखा है-परमार काल, सुल्तान काल, मुगल काल और पॅवार काल।

परमार राजाओं ने बसाया माण्डू

माण्डू को रचने-बसाने का प्रथम श्रेय परमार राजाओं को है। हर्ष, मुंज, सिंधु और राजा भोज इस वंश के महत्वपूर्ण शासक रहें हैं। किंतु इनका ध्यान माण्डू की अपेक्षा धार पर ज्यादा था, जो माण्डू से महज 30 किलोमीटर है। परमार वंश के अंतिम महत्वपूर्ण नरेश राजा भोज का ध्यान वास्तु की अपेक्षा साहित्य पर अधिक था और उनके समय संस्कृत के महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे गए। उनकी मृत्यु पर लेखकों ने यह कहकर विलाप किया कि अब सरस्वती निराश्रित हो गई हैं।

“अद्य धारा निराधारा निरालंबा सरस्वती”

अद्वितीय वास्तुशिल्प

सुल्तानों के काल में यहां महत्वपूर्ण निर्माण हुए। दिलावर खां गोरी ने इसका नाम बदलकर शादियाबाद (आनंद नगरी) रखा। होशंगशाह इस वंश का महत्वपूर्ण शासक था। मुहम्मद खिलजी ने मेवाड़ के राणा कुम्भा पर विजय के उपलक्ष्य में अशर्फी महल से जोड़कर सात मंजिला विजय स्तंभ का निर्माण कराया (अब इसकी केवल एक ही मंजिल सलामत है)। हालांकि यह तथ्य विवादित है क्योंकि राणा कुम्भा ने भी मुहम्मद खिलजी पर विजय की स्मृति में चित्तौड़ के विश्व प्रसिद्ध विजय स्तंभ का निर्माण कराया था। आमतौर पर इतिहासकार मानते हैं कि राणा ने खिलजी को बंदी बनाया था और माफी पर उसे छोड़ा था। फिर भी फरिश्ता जैसे इतिहासकार मुहम्मद खिलजी की वीरता की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। वह लिखता है कि खिलजी हमेशा युद्ध में रहता है। अशर्फी महल का निर्माण मदरसे के तौर पर हुआ था और उसके कई कमरे आज भी काफी अच्छी अवस्था में हैं।

गयासुद्दीन इस वंश का अगला शासक था। फरिश्ता के अनुसार उसकी 15000 बेगमें थीं। माण्डू में उसने शाही महल का निर्माण अपनी बेगमों के लिए कराया। 500 अरबी और 500 तुर्की महिलाएं उसकी अंगरक्षक होती थी। जहांगीर के अनुसार उसने संपूर्ण नगर ही बेगमों के लिए सजाया था। अगले शासक नासिरुद्दीन ने रूपमती-बाजबहादुर का महल बनवाकर उनके प्रेम कथानक को अमर बनाया।

जब हिंदुस्तान के तख्तोताज पर अकबर जलवाफरोज हुआ तो उसने माण्डू की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अशर्फी महल का जीर्णोद्वार कराया। जहांगीर को माण्डू की रातें बेहद पसंद थीं। वह कई बार माण्डू आया और उसने जहाज महल का जीर्णोद्वार कराया। सन 1617 में जहांगीर जब माण्डू आया तो नूरजहां उसके साथ थी और उसने जलमहल में एक लड़की को जन्म दिया। सम्राट जहांगीर ने इसी अवसर पर सर टामस को रो को प्रसव चिकित्सा के लिए माण्डू आमंत्रित किया था और इस चिकित्सा से खुश होकर उसने अंग्रेजों को व्यापार की अनुमति दी थी।

शाहजहां 1617 और 1621 में जहांगीर के निमंत्रण पर माण्डू आया था। वह होशंगशाह के मकबरे से बेहद प्रभावित था। 1669 में वह अपने वास्तुकार हामिद के साथ विशेष रूप से इस मकबरे की निर्माण शैली देखने माण्डू आया और यहीं ताजमहल की रूप रेखा बनी। सफेद संगमरमर से बना यह मकबरा शाहजहां को लुभा गया। मकबरे के नीचे जिस प्रकार कब्र पर एक- एक बूंद पानी गिरता है, उसकी भी नकल ताजमहल में की गई। शाहजहां के वास्तुकार हामिद ने इस मकबरे के मुख्य द्वार पर एक पट्टिका लगाई जिससे आज भी पता चलता है कि ताजमहल की प्रेरणा हुंमायू का मकबरा न होकर माण्डू स्थित होशंगशाह का मकबरा है।

रानी रूपमती और बाजबहादुर का अमर प्रेम

आज माण्डू रानी रूपमती और बाजबहादुर के अमर प्रेम के कारण भी याद किया जाता है। बाजबहादुर अपने समय के संगीतज्ञ थे। अबुल फजल तो उन्हें महानतम संगीतज्ञ कहते हैं। फरिश्ता के अनुसार वह राग दीपक के उस्ताद थे। किन्तु उनकी प्रेयसी पर बादशाह की नजर लग गई। इसका परिणाम यह हुआ कि रानी रूपमती को जहर खाकर अपनी जान देनी पड़ी। बाजबहादुर कुछ दिनों तक अकबर के मनसबदार रहे लेकिन रूपमती के वियोग ने उन्हें अधिक दिनों तक जीने नहीं दिया और वह चल बसे। रूपमती खुद एक संगीत विशारदा थीं। बाजबहादुर- रूपमती के महल में आज भी वह भवन सुरक्षित है जिसमें रूपमती ने संगीत सम्राट तानसेन को हराया था।

जहाज महल

जहाज महल माण्डू का सर्वाधिक चर्चित स्मारक है। चारों तरफ पानी से घिरे होने के कारण यह जहाज का दृश्य उपस्थित करता है। इसकी आकृति टी के आकार की है। इसका निर्माण परमार राजा मुंज के समय हुआ किंतु इसके सुदृढ़ीकरण का श्रेय गयासुद्दीन खिलजी को है। माण्डू की सबसे बड़ी विशेषता इसकी अंत: भूगर्भीय संरचना है। माण्डू का फैलाव जितना ऊपर है उतना ही नीचे है। शत्रु के आक्रमण के समय यह भूगर्भीय रचना सुरक्षा का एक साधन भी थी। यह संरचना अपने निर्माण से आज भी विस्मृत करती है। धार व माण्डू के बीच बने 35 भवन एक अन्य आश्चर्यजनक निर्माण हैं। येभवन इको प्वाइंट का काम करते थे। सुल्तान जब माण्डू से धार के लिए निकलता था तो इन्हीं भवनों से उसके आने की खबर दी जाती थी। माण्डू से कुछ दूरी पर बूढ़ी माण्डू स्थित है। इसे ऋषि माण्डव्य या माण्डवी के नाम पर सिद्धक्षेत्र कहा गया है।

‘माण्डू सिटी ऑफ जॉय’ के लेखक गुलाम यजदानी के अनुसार माण्डू के भवन रोमन, ग्रीक ईरानी, यूनानी, गैथिक, अफगान और हिंदू शैली से बने हैं। हिंदू शैली में बने भवन मुख्य हैं- हिण्डोला भवन, जामी मस्जिद, होशंगशाह का मकबरा आदि। पत्तियां, कमल के फूल, त्रिशूल, कलश, बंदनवार आदि इसके गवाह हैं। अफगान शैली में बने भवन हैं- रूपमती मण्डप, बाजबहादुर महल दरिया खां का मकबरा, जहाज महल आदि।

आल्हा-ऊदल के वीरता की कहानी

आल्हा-ऊदल के बिना माण्डू का वर्णन अधूरा माना जाता है। आल्हाखण्ड में महाकवि जगनिक ने 52 लड़ाइयों का जिक्र किया है। उसमें पहली लड़ाई माड़ौगढ़ की मानी जाती है, जिसका साम्य इसी माण्डू से किया जाता है। इसलिए आल्हा गायकों के लिए माण्डू एक तीर्थस्थल सरीखा है। बुंदेलखंड के लोग यहां इस लड़ाई के अवशेष देखने आते हैं। राजा जम्बे का सिंहासन, आल्हा की सांग, सोनगढ़ का किला, जहां आल्हा के पिता और चाचा की खोपडि़यां टांगी गई थी और वह कोल्हू जिसमें दक्षराज-वक्षराज को करिंगा ने पीस दिया था। ये सब आज भी आल्हा के मुरीदों को आकर्षित करते हैं।

पर्यटन का स्थान माण्डव

मांडू का दौरा करने के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने टिप्पणी करते हुए कहा था की, "मांडू के अवशेष और खंडहर रोम की तुलना में बेहतर हैं और यह स्थान दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है। मध्य प्रदेश में स्थित माण्डू का दर्शन वादिये कश्मीर का आभास देता है। ‘मालवा की मिटी का अलग ही एहसास है।’ वर्षा ऋतु में पर्यटन नगरी मांडू का नैसर्गिक सौंदर्य खिल उठा है। मांडू की वादियों ने हरियाली की चुनर ओढ़ ली है। चारों ओर फैली घनी धुंध के बीच ऐतिहासिक इमारतों को निहार कर पर्यटक आनंदित हो रहे है।

इस जगह पर वास्तुकला के खंडहर हैं

• होशांग शाह का मकबरा

• मांडू की जामी मस्जिद

• अशर्फी महल

• बाज बहादुर का महल

• रानी रूपमती का मण्डप महल

• नीलकंठ तीर्थ महल

• जहाज महल

• हिंडोला महल

• इको पाइंट

• `काकड़ा खो

•दरिया खां का मकबरा अनेक प्रकार की गुफाएं और मंदिर जुड़े हुए है स्वागत करते प्रवेश द्वार

मांडू में लगभग 12 प्रवेश द्वार है, जो मांडू में 45 किलोमीटर के दायरे में मुंडेर के समान निर्मित है. इन दरवाजों में दिल्ली दरवाजा प्रमुख है. यह मांडू का प्रवेश द्वार है. इसका निर्माण सन् 1405 से 1407 के मध्य में हुआ था. यह खड़ी ढाल के रूप में घुमावदार मार्ग पर बनाया गया है, जहाँ पहुँचने पर हाथियों की गति धीमी हो जाती थी.

इस दरवाजे में प्रवेश करते ही अन्य दरवाजों की शुरुआत के साथ ही मांडू दर्शन का आरंभ हो जाता है. मांडू के प्रमुख दरवाजों में आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, रामपोल दरवाजा, जहाँगीर दरवाजा, तारापुर दरवाजा आदि अनेक दरवाजे हैं.

होशांग शाह का मकबरा

जिसमें संगमरमर की सुन्दर जालियाँ देखते ही बनती हैं। यह मकबरा अफगानी आर्किटेक्चर का एक बेहतरीन नमूना है। उस वक्त भी इसकी इतनी चर्चा थी कि इसके स्टाइल भरे संगमरमर के काम को देखने के लिए शाहजहां ने अपने दरबार के चार नामी आर्किटेक्ट भेजे थे। इनमें से एक उस्ताद हामिद था, जो ताज महल का डिजाइन तैयार करने वालों में से एक था। होशंगशाह की कब्र, जो कि भारत में मार्बल से बनाई हुई ऐसी पहली कब्र है, जिसमें आपको अफगानी शिल्पकला का बेहतर नमूना देखने को मिलता है

जामा मस्जिद

मांडू का मुख्य आकर्षण जामा मस्जिद है यह सन् 1454 में बनवाया गया मस्जिद है, जो इस विशाल मस्जिद का निर्माण कार्य होशंगशाह के शासनकाल में आरंभ किया गया था हालांकि यह मस्जिद बेहद सादगी से बनाई गई है, लेकिन इस मस्जिद की गिनती मांडू की नायाब व शानदार इमारतों में की जाती है. यह भी कहा जाता है कि जामा मस्जिद डेमास्कस (सीरिया देश की राजधानी) की एक प्रसिद्ध मस्जिद का प्रतिरूप है.

बाज बहादुर का महल

बाज बहादुर के महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था. इस महल में विशाल हॉल बने हुए हैं. यहाँ से हमें मांडू का सुंदर नजारा देखने को मिलता है.

अशर्फी महल

जामा मस्जिद के सामने ही अशरफी महल है. अशरफी का अर्थ होता है सोने के सिक्के. इस महल का निर्माण होशंगशाह खिलजी के उत्तराधिकारी मोहम्मद खिलजी ने इस्लामिक भाषा के विद्यालय (मदरसा) के लिए किया था. यहाँ विद्धार्थियों के रहने के लिए कई कमरों का निर्माण भी किया गया था. वैसे, इस महल में एक सात मंजिला टावर भी बना है, जिसे महमूद ने मेवाड़ के राणा खंबा को हराने के बाद बनवाया था। फिलहाल इस टावर की एक ही मंजिल के अवशेष बाकी हैं

रानी रूपमती का महल

मांडू किले के अन्तिम किनारे पर स्थित इस भवन को बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेमकथा का प्रतीक कहा जाता है। पहाड़ी की चोटी पर बने इसके गलियारे से रानी रूपमती बाज बहादुर के महल और नीचे बहती नर्मदा नदी के नजारों को निहारा करती थी।

बाजबहादुर ने रानी रूपमती के लिए रेवा कुंड बनवया था रेवा कुंड का निर्माण बादशाह बाजबहादुर ने अपनी रानी रूपमती के महल में पानी की पर्याप्त व्यवस्था के स्त्रोत के रूप में किया था.

नीलकंठ

यहाँ शिवजी का मंदिर है जिसमें जाने के लिए अंदर सीढ़ी उतरकर जाना पड़ता है. इस मंदिर के सौंदर्य को शब्दों में बयाँ नहीं किया सकता. ऊपर पेड़ों से घिरे तालाब से एक धार नीचे शिवजी का अभिषेक करती जाती है.

मंदिर के समीप स्थित इस महल का निर्माण शाह बदगा खान ने अकबर की हिंदू पत्नी के लिए करवाया था. इसकी दीवारों पर अकबर कालीन कला के नमूने देखे जा सकते हैं.

जहाज महल

जहाज महल का निर्माण 1469 से 1500 ईस्वी के मध्य कराया था. यह महल जहाज की आकृति में दो कृत्रिम तालाबों कपूर तालाब व मुंज तालाब दो तालाबों के मध्य में बना हुआ है. लगभग 120 मीटर लंबे इस खूबसूरत महल को दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानों तालाब के बीच में कोई सुंदर जहाज तैर रहा हो. संभवत: इसका निर्माण श्रृंगारप्रेमी सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने विशेष तौर पर अंत:पुर (महिलाओं के लिए बनाए गए महल) के रूप में किया था.

हिंडोला महल

हिंडोला महल मांडू के खूबसूरत महलों में से एक है. हिंडोला का अर्थ होता झूला. इस महल की दीवारे कुछ झुकी होने के कारण यह महल हवा में झुलते हिंडोले के समान दिखाई देता है. अत: इसे हिंडोला महल के नाम से जाना जाता है. हिंडोला महल का निर्माण ग्यासुद्दीन खिलजी ने 1469 से 1500 ईस्वी के मध्य सभा भवन के रूप में निर्मित सुंदर महल है. यहाँ के सुंदर कॉलम इसे और भी खूबसूरती प्रदान करते हैं. इस महल के पश्चिम में कई छोटे-बड़े सुंदर महल है. इसके पास में ही चंपा बाबड़ी है.

इको पाइंट

हाथी महल, दरिया खान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मस्जिद और जाली महल भी दर्शनीय हैं. यहाँ ईको पॉइंट पर पर्यटकों की भीड़ लगी ही रहती है. लोहानी गुफाएँ और उनके सामने स्थित सनसेट पॉइंट भी पर्यटकों को खींचता है.

काकड़ा खो

पर्यटकों का सबसे पहले प्राकृतिक वातावरण में 'काकड़ा खो' पर ही स्वागत होता है।पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण पर्यटक काकड़ा खो एवं अन्य क्षेत्रों में बहने वाले झरनों के अनुपम दृश्यों से अभी तक वंचित हैं। अगर मौसम में ऐसी ही ठंडक बनी रही तो आने वाले कई रविवारों को यहां भारी संख्या में पर्यटकों का आगमन होने की संभावना है।

दरिया खां का मकबरा

यह मकबरा, ताजमहल की वास्तुकला से मिलती है और होशांग शाह का मकबरा, चार मकबरे के कोने में स्थित है। इसके अलावा, कब्र एक ऊंचे मंच पर बनी हुई है और इसके चारों ओर वर्गाकार रूप में उच्च मेहराब भी बनी हुई है।

"मांडू प्रतिनिधि के अनुसार इस नजारे को देखने के लिए भी पर्यटक यहां रुकते हैं, परंतु यहां पर्याप्त रैलिंग नहीं है। कुछ स्थानों पर है, लेकिन वह टूट चुकी है। करीब एक हजार फुट नीचे गहरी खाई है। पूर्व में यहां हादसे हो चुके हैं।"

इसकी वजह यह है कि यहां पर वर्षा ऋतु में झरना बहने लगता है।जहां सावधानी हटने पर दुर्घटना घट सकती है। यहां सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं।

मांडू जाने का बेहतर समय

जुलाई से मार्च माह का समय मांडू जाने के लिए बेहतर स्थान है। बेहतर होगा कि आप बरसात के मौसम में मांडू जाएँ क्योंकि इस मौसम में मांडू की खूबसूरती पर होती है।

मांडू से दूरी ; धार से दूरी - लगभग 33 किलोमीटर

इंदौर से दूरी - लगभग 100 किलोमीटर

कैसे, कब, कहां

मध्य प्रदेश में विंध्याचल की पहाडि़यों में 2000 फुट की ऊंचाई पर स्थित माण्डू वायु मार्ग द्वारा इंदौर और भोपाल से जुड़ा है। इंदौर यहां से 99 किलोमीटर दूर है। महू, इंदौर और खंडवा निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर रतलाम यहां से 124 किलोमीटर दूर है। धार से प्रत्येक आधे घंटे पर बस सेवा है। इसके अलावा इंदौर, खंडवा, रतलाम, उज्जैन और भोपाल से भी नियमित बस सेवा है।

यहां जाने का सर्वश्रेष्ठ समय जुलाई से मार्च तक है। माण्डू में रात्रि विश्राम के लिए अनेक प्राइवेट और सरकारी होटल हैं। मध्य प्रदेश पर्यटन के यहां मालवा रिसॉर्ट और मालवा रीट्रीट नाम से दो होटल हैं जहां नौ सौ से लेकर 18 सौ रुपये रोजाना तक किराये पर कमरे उपलब्ध हैं।

SABHAR:  Dainik Jagran

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