कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जहां पर गोविंद ने अपने मोहग्रस्त सखा पार्थ (अर्जुन) को गीता ज्ञान प्रदान करके अपने विराट रूप के दर्शन करवाए वह स्थान आज भी ज्योतिसर के नाम से जाना जाता है। ज्योतिसर अर्थात् प्रकाश का सरोवर। वह ज्ञान रूपी प्रकाश जो श्री गीता जी के माध्यम से मनुष्य सभ्यता को प्राप्त हुआ। हरियाण प्रदेश के कुरुक्षेत्र नगर से लगभग आठ कि.मी. की दूरी पर पेहवा मार्ग पर विराजमान यह तीर्थ भारत के प्रमुख तीर्थों में सम्मिलित है। शांत व सुरम्य वातावरण से परिपूर्ण इस तीर्थ की परिधि में प्रवेश करते ही अद्भुत मानसिक शांति का अनुभव होता है। उस पवित्र अक्षय वट के दर्शनों से, जिसके नीचे प्रभु ने अर्जुन को कर्म का पाठ पढ़ाया था, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम उन्हीं क्षणों के साक्षी बन गए हों। मूलत: यह स्थान सरस्वती नदी के तट पर स्थित है जो अब यहां लुप्त अवस्था में बहती है। तीर्थ में एक प्राचीन सरोवर के तट पर ही वह स्थान है जहां अक्षय वट के नीचे भगवान ने अर्जुन को गीता जी का ज्ञान प्रदान किया था। यहां के वातावरण में प्रवेश करते ही आध्यात्मिक तरंगें हर जन को पवित्रता के पाश में जैसे बांध लेती हैं। ऐसा आभास होता है कि जैसे आज भी श्री गीता जी का संदेश यहां के वायुमंडल से प्रस्फुटित हो रहा हो। अपने उद्भव के समय से ही यह स्थान भारत वर्ष में पैदा हुए विभिन्न महान संतों , ज्ञानियों व तपस्वियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। अपनी आध्यात्मिक पिपासा को शांत करने के लिए वे विभिन्न कालों में यहां पधारते रहे हैं। आदि शंकराचार्य का भी गीता जी के मनन व चिंतन के लिए यहां आगमन हुआ था। पूर्व में कई शासकों ने यहां श्रद्धापूर्वक निर्माण कार्य करवाए परन्तु विदेशी आक्रमणकारियों की संकुचित सोच के चलते कुछ भी शेष न रहा। वर्तमान में मंदिर प्रांगण में एक शिव मंदिर के अवशेष विद्यमान हैं जिसके संदर्भ में कहा जाता है कि कश्मीर के राजा ने इसका निर्माण करवाया। कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य के प्रयासों से वर्ष 1967 में अक्षय वृक्ष के निकट एक सुंदर कृष्ण-अर्जुन रथ का निर्माण किया गया तथा साथ ही शंकराचार्य मंदिर का भी निर्माण हुआ।
आज मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे मंदिर स्थापित हैं जहां विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त महाभारत के विभिन्न पात्रों को लेकर बनाई गई झांकियां भी दर्शनीय हैं। इस तीर्थ की व्यवस्था कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के हाथों में है जिसने इस तीर्थ के समुचित विकास के लिए पिछले कुछ वर्षों में सराहनीय कार्य किया है। सरोवर को पक्का करवाने के साथ-साथ सुंदर मुख्य द्वार व हरियाली युक्त बगीचों का निर्माण हुआ है। ऐसी व्यवस्था की गई है कि सरोवर को मुख्य बड़ी नहर से ताजा पानी प्राप्त होता रहे। पूरे प्रांगण में संगमरमर तथा अन्य पत्थर लगाकर सफाई व सौंदर्य का उचित प्रबन्ध किया गया है। अक्षय वट के चारों ओर सुंदर चबूतरे का निर्माण करके तीर्थ की गरिमा बनाई रखी गई है। कई अन्य प्राचीन वृक्षों का भी संरक्षण किया गया है। संध्या के समय ध्वनि व प्रकाश कार्यक्रम के माध्यम से गीता उपदेश व महाभारत के प्रसंगों को पूरे प्रांगण में जीवंत किया जाता है। एक घंटे के इस कार्यक्रम का आयोजन रोज होता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। प्रत्येक वर्ष शीत ऋतु के समय मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात् श्री गीता जयन्ती के दिन कुरुक्षेत्र उत्सव का आयोजन किया जाता है। यह उत्सव लगभग एक सप्ताह तक चलता है, जिसमें देश के विख्यात कलाकार अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। लगभग प्रत्येक प्रदेश के हस्तशिल्पी अपनी-अपनी कृतियों की बिक्री के लिए कुरुक्षेत्र में जुटते हैं। राज्य सरकार ने इस मेले को राज्यस्तरीय दर्जा दे रखा है। कुल मिला कर श्री गीता जी के जन्मोत्सव को यहां धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे भी वर्तमान समय में गीता जी की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। भौतिक भोग विलास व लोभ की पराकाष्ठा ने हमें आसुरी वृत्तियों से ओतप्रोत कर दिया है। हमारी हर प्रकार से आध्यात्मिक अवनति होती जा रही है। मनुष्य ने स्वयं ही अपने महाविनाश के बीज बो दिये हैं। इस सबके बीच श्री गीता जी ही हमें सही राह दिखा सकती हैं।
साभार : अभिनव, पांचजन्य