Sunday, July 12, 2020

भारत में नहीं इस देश में मौजूद है भगवान विष्णु की सबसे बड़ी मूर्ति

भारत में नहीं इस देश में मौजूद है भगवान विष्णु की सबसे बड़ी मूर्ति

इंडोनेशिया पर है रामायण की गहरी छाप

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मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्थित हजारों द्वीपों पर फैले इंडोनेशिया में मुसलमानों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। साल 2010 में हुए एक सर्वे के अनुसार, इंडोनेशिया की अनुमानित जनसंख्या 25.5 करोड़ से अधिक है और यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। 90 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया पर रामायण की गहरी छाप है। इंडोनेशिया में लोग बेहतर इंसान बनने के लिए रामायण पढ़ते हैं। साथ ही रामायण यहां की स्कूली शिक्षा का अभिन्न हिस्सा है।

किष्किंधा कांड में है दो द्वीपों का उल्लेख
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रामायण का इंडोनेशियाई संस्करण मेदांग राजवंश का शासन के दौरान मध्य जावा में 7वीं सदी में लिखा गया था। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड में भी इंडोनेशिया के दो द्वीपों का उल्लेख मिलता है। जब सुग्रीव ने माता सीता की खोज के लिए अपने दूतों को भारत के पूर्व में स्थित यवद्वीप और सुवर्ण द्वीप पर जाने का आदेश दिया था। कई इतिहासकारों का मानना है कि आज के जावा और सुमात्रा द्वीपों का नाम उस समय यवद्वीप और सुवर्ण द्वीप रहा होगा।

बाली द्वीप पर मौजूद है प्रतिमा
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अब बात भगवान विष्णु की सबसे ऊंची प्रतिमा की, तो यह मूर्ति इंडोनेशिया के सबसे फेमस टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स में से एक बाली द्वीप पर मौजूद है। बाली द्वीप के गरुड़ विष्णु केचना कल्चरल पार्क में मौजूद यह मूर्ति करीब 122 फुट ऊंची और 64 फुट चौड़ी है। तांबे और पीतल से निर्मित इस मूर्ति को बनाने में लगभग 28 साल का समय लगा है और साल 2018 में बनकर तैयार हुई है। इंडोनेशिया के फेमस मूर्तिकार न्यूमन नुआर्ता ने इस मूर्ति को बनाया है।

फेमस मूर्तिकार न्यूमन नुआर्ता ने किया है निर्माण

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न्यूमन नुआर्ता को भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने साल 2018 में पद्म श्री से नवाज़ा था। न्यूमन नुआर्ता ने साल 1979 इस प्रकार की एक मूर्ति बनाने का सपना देखा था। साल 1989 में इंडोनेशिया के 'फादर ऑफ टूरिज्म' कहे जाने वाले दिवंगत जोप आवे ने इसके निर्माण का बीड़ा उठाया। इसके बाद साल 1990 में Garuda Wisnu Kencana Cultural Park (GWK) का विकास शुरू हुआ, जिसमें केंद्र और क्षेत्रीय सरकारें शामिल थीं। साल 1993 इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुहार्तो ने इस परियोजना को मंजूरी दी।

बनने में लगा 28 साल का समय

साल 1997 में जीडब्ल्यूके मेगा-प्रोजेक्ट के विकास की आधिकारिक रूप से शुरूआत हुई। हालांकि फिर यह परियोजना वित्तीय संकट के कारण ठंडे बस्ते में पड़ी रही। साल 2000 में न्यूमन नुआर्ता ने GWK एक्सपो की मेजबानी की जहां प्रतिमा के भागों, विष्णु और गरुड़ को प्रदर्शन के लिए रखा गया। इसके नौ साल बाद 2009 बाली के गवर्नर मेड मांगू पास्तिका ने परियोजना के विकास को मंजूरी दी। साल 2012 में इंडोनेशिया के सबसे बड़े प्रॉपर्टी डिवेल्पर्स में से एक पीटी आलम सुतेरा टीबीके ने इस परियोजना का अधिग्रहण किया था।

साल 2018 में पूरा हुआ निर्माण

अपने वाहन गरुड़ पर विराजमान भगवान विष्णु की इस भव्य प्रतिमा का निर्माण साल 2018 में पूरा किया गया और आधिकारिक रूप से उद्घाटन किया गया। इस मूर्ति का कुल वजन 3,000 से अधिक टन है और यह किसी 23-मंजिला इमारत के बराबर है। इसे ऐसे डिज़ाइन किया गया है, यह अगले 100 सालों तक सुरक्षित रहेगा। इसका निर्माण तांबा, पीतल और स्टेनलेस स्टील का उपयोग किया गया है, जिन्हें अग़ल-अलग देशों से आयात किया गया है।

बेहद मजबूत है मूर्ति

तांबा जापान, चीन, लैटिन अमेरिका से और पीतल जर्मनी से मंगाया गया है। वहीं मूर्ति के भीतरी ढांचे को भारत से मंगाए गए नॉन-कोरोसिव स्टेनलेस स्टील से बनाया गया है। मूर्ति की मजबूती का अंदाज़ा इसी बता से लगाया जा सकता है कि यह रिक्टर स्केल पर 8 की तीव्रता के भूकंप के झटकों और 250 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहे हवा का दवा को भी बेहद आसानी से झेल सकता है।

कभी परियोजना के खिलाफ थे स्थानीय लोग

बाली में इस पार्क के पास रहने वाले स्थानीय लोगों ने परियोजना के खिलाफ आवाज भी उठाई थी। हालांकि तब उन्हें इसकी अहमियत और भविष्य में होने वाले फ़ायदों के बारे में बता कर समझाया गया, तब जाकर यह प्रॉजेक्ट पूरा हो पाया। आज यह पार्क इंडोनेशिया के सबसे बड़े टूरिस्ट डेस्टिनेशन में से एक है और इसे देखने के लिए दुनिया भर से लाखों लोग आते हैं। यह पार्क कई अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की मेज़बानी भी कर चुका है।

इंडोनेशिया में मौजूद हैं ऐसे कई प्रतीक

इंडोनेशिया की राष्ट्रीय विमान सेवा का नाम विष्णु के वाहन माने जाने वाले गरुड़ के नाम पर ही है। इंडोनेशिया के नेशनल एंब्लेम को गरुड़ पंकशील कहा जाता है। वहीं इंडोनेशिया के मिलिट्री इंटेलिजेंस के मैस्कॉट हनुमान जी हैं। गणेश, कृष्ण और हनुमान के साथ महाभारत-रामायण के दृश्यों को दर्शाते हुए कई डाक टिकट यहां जारी किए जा चुके हैं। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में भगवान कृष्ण और अर्जुन की मूर्तियां लगी हुई हैं।

साभार: नवभारत टाइम्स 

Thursday, June 4, 2020

देश की सबसे कठिन तीर्थ यात्राएं

देश की सबसे कठिन तीर्थ यात्राएं / मानसरोवर में 90 और अमरनाथ में 45 किमी की चढ़ाई, 12 साल में एक बार होने वाली नंदा देवी यात्रा में 280 किमी का सफर 3 हफ्ते में 


नेशनल लॉकडाउन के कारण अमरनाथ यात्रा से लेकर कैलाश मानसरोवर तक की यात्राओं पर संशय के बादल हैं। केदारनाथ के कपाट खुल चुके हैं लेकिन अभी वहां जाने पर रोक है। अमरनाथ, केदारनाथ और मानसरोवर तीनों ही दुर्गम यात्राएं मानी जाती हैं। यहां पहुंचना आसान नहीं है। पर्वतों के खतरों से भरे रास्तों से गुजरना होता है। लेकिन, ये तीन ही अकेले ऐसे तीर्थ नहीं हैं। दर्जन भर से ज्यादा ऐसे कठिन रास्तों वाले तीर्थ हैं, जहां पहुंचना हर किसी के बूते का नहीं है। कुछ स्थान तो ऐसे हैं, जहां पहुंचने में एक दिन से लेकर एक हफ्ते तक का समय लग सकता है। 

ऊंचे पर्वत क्षेत्रों के मंदिर आम भक्तों के लिए कब खोले जाएंगे, ये स्पष्ट नहीं है। हाल ही में केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनौत्री धाम के कपाट खुल गए हैं, बद्रीनाथ के कपाट भी खुलने वाले हैं, लेकिन यहां आम भक्त अभी दर्शन नहीं कर पाएंगे। भारत के 14 ऐसे दुर्गम तीर्थों जहां हर साल लाखों भक्त पहुंचते हैं, लेकिन इस साल ये यात्राएं अभी तक बंद हैं... 

अमरनाथ यात्रा 

सबसे कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक है अमरनाथ की यात्रा। से कश्मीर के बलटाल और पहलगाम से अमरनाथ यात्रा शुरू होती है। ये तीर्थ अनंतनाग जिले में स्थित है। अमरनाथ की गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग बनता है। यहां पहुंचने का रास्ता चुनौतियों से भरा है। प्रतिकूल मौसम, लैंडस्लाइड, ऑक्सीजन की कमी जैसी समस्याओं के बावजूद लाखों भक्त यहां पहुंचते हैं। शिवजी के इस तीर्थ का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां स्थित शिवलिंग पर लगातार बर्फ की बूंदें टपकती रहती हैं, जिससे 10-12 फीट ऊंचा शिवलिंग निर्मित होता है। गुफा में शिवलिंग के साथ ही श्रीगणेश, पार्वती और भैरव के हिमखंड भी निर्मित होते हैं। 

हेमकुंड साहिब 

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित हेमकुंड साहिब सिखों का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां बर्फ की बनी झील है जो सात विशाल पर्वतों से घिरी हुई है, जिन्हें हेमकुंड पर्वत भी कहते हैं। मान्यता है कि हेमकुंड साहिब में सिखों के दसवें गुरु गुरुगोबिंद सिंह ने करीब 20 सालों तक तपस्या की थी। जहां गुरुजी ने तप किया था, वहीं गुरुद्वारा बना हुआ है। यहां स्थित सरोवर को हेम सरोवर कहते हैं। जून से अक्टूबर तक हेमकुंड साहिब का मौसम ट्रैकिंग के लिए अनुकूल रहता है। इस दौरान अधिकतम तापमान 25 डिग्री और न्यूनतम तापमान -4 डिग्री तक हो जाता है। यहां पहुंचने के लिए ग्लेशियर और बर्फ से ढंके रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। 

कैलाश मानसरोवर 

शिवजी का वास कैलाश पर्वत माना गया है और ये पर्वत चीन के कब्जे वाले तिब्बत में स्थित है। ये यात्रा सबसे कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक है। यहां एक सरोवर है, जिसे मानसरोवर कहते हैं। मान्यता है कि यहीं माता पार्वती स्नान करती हैं। प्रचलित कथाओं के अनुसार ये सरोवर ब्रह्माजी के मन से उत्पन्न हुआ था। इसके पास ही कैलाश पर्वत स्थित है। इस जगह को हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म में भी बहुत पवित्र माना जाता है। मानसरोवर का नीला पानी पर्यटकों के लिए आकर्षण और आस्था का केंद्र है। यह यात्रा पारंपरिक रूप से लिपुलेख उत्तराखंड रूट और सिक्किम नाथुला के नए रूट से होती है। 

वैष्णोदेवी 

जम्मू के रियासी जिले में वैष्णोदेवी का मंदिर स्थित है। ये मंदिर त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है। यहां भैरव घाटी में भैरव मंदिर स्थित है। मान्यता के अनुसार यहां स्थित पुरानी गुफा में भैरव का शरीर मौजूद है। माता ने यहीं पर भैरव को अपने त्रिशूल से मारा था और उसका सिर उड़कर भैरव घाटी में चला गया और शरीर इस गुफा में रह गया था। प्राचीन गुफा में गंगा जल प्रवाहित होता रहता है। वैष्णो देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए कई पड़ाव पार करने होते हैं। इन पड़ावों में से एक है आदि कुंवारी या आद्यकुंवारी। 

केदारनाथ 

बुधवार, 29 अप्रैल को केदारनाथ धाम के कपाट खुल गए हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ है। ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। मान्यता है कि प्राचीन समय में बदरीवन में विष्णुजी के अवतार नर-नारायण इस क्षेत्र में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करते थे। नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए थे। केदारनाथ मंदिर का निर्माण पाण्डव वंश के राजा जनमेजय द्वारा करवाया गया था और आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया था। गौरीकुंड से केदारनाथ के लिए 16 किमी की ट्रेकिंग शुरू होती है। मंदाकिनी नदी के किनारे बेहद खूबसूरत दृश्य दिखाई देते हैं। एक यात्रा गुप्तकाशी से भी होती है। नए रूट में सीतापुर या सोनप्रयाग से यात्रा शुरू होती है। गुप्तकाशी रूट पर ट्रैकिंग ज्यादा करना होती है। 

श्रीखंड महादेव 

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में श्रीखंड महादेव शिवलिंग स्थित है। यहां शिवलिंग की ऊंचाई करीब 75 फीट है। इस यात्रा के लिए जाओं क्षेत्र में पहुंचना होता है। यहां से करीब 32 किमी की ट्रेकिंग है। मार्ग में जाओं में माता पार्वती का मंदिर, परशुराम मंदिर, दक्षिणेश्वर महादेव, हनुमान मंदिर स्थित हैं। मान्यता है शिवजी से भस्मासुर को वरदान दिया था कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। तब भगवान विष्णु ने भस्मासुर को इसी स्थान पर नृत्य करने के लिए राजी किया था। नृत्य करते-करते भस्मासुर ने खुद का हाथ अपने सिर पर ही रख लिया था, जिससे वह भस्म हो गया। 

नंदादेवी यात्रा 

उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में हर 12 साल में एक बार नंदादेवी की यात्रा होती है। नंदा देवी पर्वत तक जानेवाली यह यात्रा छोटे गांव और मंदिरों से होकर गुजरती है। इसकी शुरूआत कर्णप्रयाग के नौटी गांव से होती है। 2014 में ये यात्रा आयोजित हुई थी। मान्यता है कि हर 12 साल में नंदा मां यानी देवी पार्वती अपने मायके पहुंचती हैं और कुछ दिन वहां रूकने के बाद भक्तों के द्वारा नंदा को घुंघटी पर्वत तक छोड़ा जाता है। घुंघटी पर्वत को शिव का निवास स्थान और नंदा का सुसराल माना जाता है।
 
मणिमहेश 

हिमाचल के चंबा जिले में स्थित है मणिमहेश। यहां शिवजी मणि के रूप में दर्शन देते है। मंदिर भरमौर क्षेत्र में है। भरमौर मरु वंश के राजा मरुवर्मा की राजधानी थी। मणिमहेश जाने के लिए भी बुद्धिल घाटी से होकर जाना पड़ता है। यहां स्थित झील के दर्शन के लिए भक्त पहुंचते हैं।
 
शिखरजी 

झारखंड के गिरीडीह जिले में जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ शिखरजी स्थित है। ये मंदिर झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। इस क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया था। 

यमनोत्री 
यमुनादेवी का ये मंदिर उत्तराखंड के चारधामों में से एक है। यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। ये यमुना नदी का उद्गम स्थल है और ऊंची पर्वतों पर स्थित है। हनुमान चट्टी से 6 किमी की ट्रेकिंग करनी होती है और जानकी चट्टी करीब 4 किमी ट्रेकिंग करनी होती है। 

फुगताल या फुक्ताल 

लद्दाख के जांस्कर क्षेत्र में स्थित है फुगताल यानी फुक्ताल। यहां 3850 मीटर ऊंचाई पर बौद्ध मठ स्थित है। ये मंदिर 12वीं शताब्दी का माना जाता है। 

तुंगनाथ 

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ शिव मंदिर स्थित है। मंदिर के संबंध में मान्यता है कि ये हजार साल पुराना है। यहां मंदाकिनी नदी और अलकनंदा नदी बहती है। इस क्षेत्र में चोपटा चंद्रशिला ट्रेक पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 

गौमुख 

उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री स्थित है। यहां से करीब 18 किमी दूर गौमुख है। यहीं से गंगा का उद्गम माना जाता है। इस क्षेत्र में गंगा को भागीरथी कहते हैं। ये क्षेत्र उत्तराखंड के चार धामों में से एक है। 

रुद्रनाथ 

रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल में स्थित है। यहां शिवजी का मंदिर है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 3,600 मीटर है। मान्यता है कि रुद्रनाथ मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई थी। सभी पांडव यहां शिवजी की खोज में पहुंचे थे। महाभारत युद्ध में मारे गए यौद्धाओं के पाप के प्रायश्चित के लिए पांडव यहां आए थे।

साभार:  दैनिकभास्कर