Wednesday, July 17, 2013

BODDH GAYA - बोध गया जहां सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई

भगवान् गौतम बुद्ध (चित्र साभार : great-buddha-statue.com)


महाबोधि मंदिर (चित्र साभार : Archaeological Survey of India)

महाबोधि मंदिर (चित्र साभार: विकिपीडिया)

अभी पिछले ही दिनों जिहादियों ने बोध गया के विश्व प्रसिद्ध महाबोधि मन्दिर को बम से उड़ाने का असफल प्रयास किया। स्वाभाविक रूप से लोगों के मन में उस मन्दिर को जानने की उत्सुकता रही। बोध गया बिहार की राजधानी पटना से दक्षिण लगभग 100 किलो मीटर की दूरी पर धार्मिक नगरी गया के पास स्थित है। कहते हैं बोधगया में बोधि पेड़ के नीचे तपस्यारत महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस कारण बोधगया दुनियाभर के बौद्धों के लिए सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। 2002 ईसवीं में यूनेस्को ने इस धार्मिक नगरी को 'विश्व विरासत स्थल' घोषित किया था। कई प्राचीन ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि ईसा से 500 वर्ष पहले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में फल्गु नदी के तट पर उरुवेला नामक गांव में पहुंचे और यहां एक पीपल पेड़ के नीचे तपस्या करने लगे। तीन दिन और तीन रात तक तपस्या करने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। उसी उरुवेला गांव का नाम बाद में बोध गया हो गया। ज्ञान प्राप्ति के बाद राजकुमार का नाम गौतम बुद्ध हो गया। बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति वैशाख पूर्णिमा के दिन हुई थी। इसलिए वैशाख की पूर्णिमा बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है। कहा जाता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध ने वहां 7 हफ्ते अलग-अलग जगहों पर ध्यान करते हुए बिताया, और फिर बनारस के पास सारनाथ जाकर धर्म का प्रचार शुरू किया।

कहा जाता है कि गौतम बुद्ध को ज्ञान मिलने के 250 साल बाद राजा अशोक बोधगया पहुंचे। उन्होंने ही महाबोधि मन्दिर का निर्माण कराया था। बाद में एक ऐसा समय आया कि भारत में बौद्ध मत का एक तरह से लोप हो गया। फिर मुस्लिम आक्रन्ताओं ने भी इस मन्दिर को नष्ट करने का प्रयास किया। वर्षों तक इसकी देखरेख न होने के कारण यह मन्दिर मिट्टी में दब गया। माना जा रहा है कि 19वीं सदी में अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस मन्दिर की मरम्मत कराई। 1883 में उन्होंने इस जगह की खुदाई करवाई और काफी मरम्मत के बाद बोधगया को अपने पुराने शानदार अवस्था में लाया गया।

गया का विष्णुपद मन्दिर

बोध गया से पहले गया नामक तीर्थ नगरी है। यहां विष्णुपद मन्दिर है। यह मन्दिर फल्गु नदी के किनारे है। मान्यता है कि इस मन्दिर का निर्माण भगवान विष्णु के पदचिह्नों पर किया गया है। यह मन्दिर 30 मीटर ऊंचा है। मन्दिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लम्बे पांव के निशान हैं। यहां श्राद्ध पक्ष में हन्दू अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु जीवों को मुक्ति देने के लिए गदाधर रूप में स्थित हैं। कथा है कि प्राचीन काल में गया नामक एक असुर देवताओं को परेशान करता था। देवताओं के निवेदन पर भगवान विष्णु ने उसे इसी क्षेत्र में मार गिराया। 

भगवान विष्णु ने वहां की मर्यादा स्थापित करते हुए कहा कि इसकी देह पुण्यक्षेत्र के रूप में होगी। यहां जो भक्ति, यज्ञ, श्राद्ध, पिण्डदान अथवा स्नानादि करेगा, वह स्वर्ग तथा ब्रह्मलोक में जाएगा, नरकगामी नहीं होगा। ब्रह्मा जी ने गया तीर्थ को श्रेष्ठ जानकर वहां यज्ञ किया और ऋत्विक रूप में आए हुए ब्राह्मणों की पूजा की।

ब्राह्मणों द्वारा प्रार्थना करने पर प्रभु ब्रह्मा ने कहा- गया में जिन पुण्यशाली लोगों का श्राद्ध होगा, वे बह्मलोक को प्राप्त करेंगे।

बोधगया और गया में अनेक देशों से बौद्ध और हिन्दू तो आते ही हैं साथ ही अन्य मत-पंथों के लोग भी बड़ी संख्या में आते हैं। बोधगया हवाई मार्ग और रेल मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। दिल्ली से आप सीधे गया पहुंच सकते हैं। पटना होते हुए भी गया जाया जा सकता है।

साभार: पांचजन्य 

Thursday, July 11, 2013

SINDHUVAN - सिंधुवन में बद्री-केदार की महिमा अपार


सिंधुवन में बद्री-केदार की महिमा अपार





यमुनानगर जिले के कपाल मोचन से करीब 15 किलोमीटर व बिलासपुर गांव से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय की शिवालिक की पहाड़ियों के बीच सिंधुवन में स्थित आदिबद्री नाम से प्रसिद्ध ऐतिहासिक धार्मिक स्थल को भगवान बद्रीनाथ के प्राचीन निवास स्थान और सरस्वती नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है।

अधिकतर श्रद्धालु मानते हैं कि हिमालय में तपस्या करने से पूर्व भगवान विष्णु ने सिंधुवन में सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर तप किया था। इसीलिए इस स्थान को आदिबद्री नाम से जाना जाता है। यहीं पर भगवान केदारनाथ का मंदिर भी स्थित है जो उत्तराखंड के दुर्गम रास्तों में स्थित बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम की यात्रा करने की तरह पुण्य फल प्रदान करते हैं। चार धामों के रूप में माने जाने वाले इस ऐतिहासिक धार्मिक स्थल पर सरस्वती नदी के उत्तरी तट पर श्री आदिबद्री नारायण नाम से भगवान बद्रीनाथ का प्राचीन मंदिर स्थित है तो दक्षिण दिशा में भगवान केदारनाथ का, पूर्व में माता मंत्रा देवी व पश्चिम में मां सरस्वती कुंड है। प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर यह धार्मिक स्थल अनेक वर्षो से श्रद्धालुओं की आस्था व अटूट विश्वास का प्रतीक बना हुआ है। यहां पर स्थित केदारनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग व मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा हर श्रद्धालु को आस्थामय कर देते हैं। यहां पर हर रविवार और सावन मास में प्राचीन शिवलिंग के दर्शन कर मन्नतें मांगने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णमासी तक और अक्षय तृतीया तक वर्ष में दो बार मेला भी लगता है। हर रविवार को यहां पर भक्तों द्वारा भंडारा भी लगाया जाता है।

यहां पर स्थित केदारनाथ मंदिर के पुजारी कृपा शंकर का कहना है कि इस प्राचीन मंदिर को आदिगुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था। सरस्वती नदी के उत्तरी तट पर स्थित भगवान बद्रीनाथ के श्री आदिबद्री नारायण मंदिर में चार भुजाओं वाली तप की मुद्रा में भगवान विष्णु की प्रतिमा हर श्रद्धालु को सहज ही आकर्षित कर लेती है। आदिबद्री नारायण मंदिर के पुजारी देवकीनंदन शास्त्री का कहना है कि भगवान बद्रीनाथ ने हिमालय प्रस्थान से पहले इसी स्थान पर तप किया था जिस कारण इस स्थान को आदिबद्री नाम से जाना जाता है। पृथ्वी पर भगवान विष्णु के तप करने के दौरान माता लक्ष्मी ने बेरी के पेड़ के रूप में प्रकट रहकर विष्णु को छाया व रक्षा प्रदान की थी। लक्ष्मी बद्री रूप में थी तो यज्ञ की सफलता के लिए उन्होंने मंत्रों से मां मंत्रा को प्रकट किया। श्री आदिबद्री नारायण मंदिर से काफी ऊंचाई पर संपूर्ण विश्व में मंत्रों द्वारा उत्पन्न एकमात्र माता मंत्रा देवी का मंदिर पिंडी रूप में पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। पुजारी का कहना है कि आदिबद्री का अर्थ ही प्राचीन बेरी का पेड़ है जिनको इसी स्थान पर पहाड़ी पर स्थापित किया गया है। करीब तीन किलोमीटर की चढ़ाई के बाद हिमाचल के सिरमौर जिले व यमुनानगर की सीमा रेखा पर स्थित मंत्रा देवी के मंदिर में भी हर श्रद्धालु बड़ी आस्था से पहुंचता है। माना जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने हिमालय प्रस्थान से पहले तप किया था। इसीलिए यमुनानगर के इस आदिबद्री नामक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल को बद्रीनाथ धाम से भी प्राचीन माना जाता है। इसी स्थान के पास बाबा गोरखनाथ की इष्ट रणचंडी के रूप में प्रचलित गोशाला भी है जो भक्तों के कष्टों को हर लेती है। यहां पर अष्टबसु धारा से आठ अलग-अलग स्वादों में जल प्रवाहित होता है। भारतवर्ष में प्रथम प्रयोगात्मक वनस्पति यज्ञशाला भी यहां स्थित है। सरस्वती नदी के उद्गम स्थल के दर्शनों के लिए यहां अनेक श्रद्धालु तो आते ही रहते हैं, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी यहां पर आ चुके हैं। उद्गम स्थल से निकले पुरातन अवशेष भी यहां पर संग्रहीत किए गए हैं। इस सिंधुवन क्षेत्र में भगवान बद्रीनाथ व केदारनाथ की अपार महिमा दिखाई देती है।

साभार : दैनिक जागरण